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________________ अस्तित्व और अहिंसा है ? संयम का अर्थ है निग्रह करना । अठारह पाप का प्रत्याख्यान करने का अर्थ है संयम। जो व्यक्ति संयम को स्वीकार करता है, वह इस संकल्प को स्वीकार करता है--भन्ते ! मैं सामायिक करता हूं और सर्व सावध योग का त्याग करता हूं। सर्व सावध योग के त्याग का मतलब है अठारह पाप का त्याग । राग-द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, पर-परिवाद आदि-आदि अठारह पाप में समाविष्ट हैं। स्थूल निर्देश क्यों ? हिंसा है असंयम । इस परिभाषा से कौन-सी हिंसा मुक्त है ? इस एक सूत्र में अहिंसा का मूल हृदय आ जाता है । जड़ को पकड़ना बहुत बड़ी बात है। आज व्यक्ति स्थूलदृष्टि वाला है। वह सूक्ष्म बात को कम पकड़ता है। इसीलिए अहिंसा के सन्दर्भ में यह निर्देश दिया गया--किसी को मारो मत । जब तुम किसी को मारते हो तो वह छटपटाता है। क्या तुम्हें दया नहीं आती ? मरते समय जब प्राण निकलते है तब बड़ी कठिनाई होती है, बड़ी छटपटाहट होती है इसलिए तुम किसी को मत सताओ। मत मारो—यह बताकर मनुष्य के मन में करुणा का भाव पैदा किया गया, अनुकम्पा पैदा की गई। जब करुणा का विकास होता है तब वह न मारने तक ही सीमित नहीं रहता, आगे बढ़ जाता है। उसमें प्रेम का भाव बढ़ता है। जिस व्यक्ति में प्रेम और मैत्री का भाव विकसित है वह मैत्री का विकास करेगा प्राणी मात्र के लिए। जब तक पराएपन का भाव होता है, शत्रुता का भाव मन में छिपा रहता है तब तक मैत्री का भाव विकसित नहीं होता। प्रश्न शस्त्रीकरण का महावीर ने मनोवैज्ञानिक ढंग से इस स्थूल बात को पकड़ा । यह व्यावहारिक बात है। बहुत साधारण लोगों में पहले सूक्ष्म बात नहीं कहनी चाहिए, इसीलिए शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन में निःशस्त्रीकरण की स्थूल बात भाई गई। पहले यही बताया गया—निःशस्त्रीकरण करो, किसी को मार मत, सताओ मत । जैसे-जैसे यह संकल्प पुष्ट होगा वैसे-वैसे असंयम का भाव कम होगा । जैसे-जैसे असंयम का भाव कम होगा वैसे-वैसे मैत्री बढ़ेगी, व्यक्ति अपने आप संयम की सीमा में अपना जीवन चलाएगा। शस्त्रीकरण और निःशस्त्रीकरण-हमारे समक्ष ये दो शब्द हैं। आज भी शस्त्रीकरण एक समस्या है। सौ वर्ष पहले किसी ने यह सोचा भी नहीं होगा कि राजनीति के लोग कभी निःशस्त्रीकरण शब्द का उच्चारण करेंगे । जनता निःशस्त्रीकरण की बात पर आन्दोलन करेगी, निःशस्त्रीकरण एक मुख्य मुद्दा बन जाएगा, पर विचार के विकास को रोका नहीं जा सकता। एक व्यक्ति ने जो विचार दिया, शताब्दियों के बाद वह विचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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