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________________ निःशस्त्रीकरण सबके पीछे जो चर्चा होनी चाहिए, वह नहीं हो रही है। इन सबके मूल में असंयम है और उसे कम करने की चर्चा बहुत कम चलती है। केवल कुछ प्रक्षेपास्त्रों को कम करने से निःशस्त्रीकरण की बात सम्भव नहीं बनेगी। एक शासक शस्त्रों को कम करने की बात करता है तो दूसरा शासक शस्त्रों को बढ़ाने की बात करता है। जब तक असंयम को कम करने की ओर मनुष्य समाज का ध्यान आकर्षित नहीं होगा तब तक निःशस्त्रीकरण की बात सफल नहीं बन पाएगी। भगवान् महावीर ने भाव-शस्त्र पर, असंयम पर बहुत बल दिया। उन्होंने कहा--मूल जड़ को पकड़ो, असंयम को कम करो। असंयम कम होगा तो बन्दूकें, तोपें, तलवारें मनुष्य के लिए खतरनाक नहीं बनेंगी। प्रमाद हिंसा नहीं है ? एक प्रश्न उभरता है-भगवान् महावीर ने पूरे शस्त्र-परिज्ञा अध्ययन में छह काय के जीवों का वध न करने का उपदेश दिया पर मानसिक स्तर पर होने वाली हिंसा की कोई चर्चा नहीं की। ऐसा क्यों ? इसका कारण क्या है ? शस्त्र-परिज्ञा अध्ययन में यह नहीं बताया गया-कलह मत करो, निन्दा मत करो, चुगली मत करो, किसी के प्रति बुरे विचार मत लाओ ! केवल मत मारो का ही निर्देश मिलता है। कर्म का समारंभ मत करो यानी वध मत करो। उन्होंने वध को ही क्यों पकड़ा ? क्या वध ही हिंसा है ? क्या प्रमाद हिंसा नहीं है ? 'सर्वे प्राणाः न हंतव्याः अहिंसाऽसौ प्रकीर्तिताः । कि हिंसा वध एवास्ति, प्रमादो वा भवेदसौ ? इसका समाधान हैवधः कायं प्रमादश्च, कारणं नाम विद्यते । अप्रमत्तो वधार्थ नो, संतापाय न चेष्टते ॥ वध कार्य है । प्रमाद उसका कारण है। जो अप्रमत्त होता है, वह किसी के वध या संताप के लिए चेष्टा नहीं करता। प्रश्न मानसिक हिंसा का कभी-कभी यह स्वर भी सुना जाता है-जैन लोग जितना प्राणी को न मारने पर बल देते हैं, उतना मानसिक हिंसा या मानसिक अहिंसा पर बल नहीं देते। इसका कारण क्या है ? वस्तुत: यह अवधारणा सही नहीं है। महावीर की भाषा में हिंसा का अर्थ है असंयम । अहिंसा का अर्थ है संयम । हिंसा का अर्थ है प्रमाद । अहिंसा का अर्थ है अप्रमाद । जब संयम ही अहिंसा है, अप्रमाद ही अहिंसा है तब कौन-सी मानसिक हिंसा बचती है ? कौन-सी वैचारिक हिंसा बचती है ? कौन-सा बुरा भाव बचत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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