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तराजू के दो पल्ले
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पर अंगार - पात्र नहीं रखा पाएगा। स्वयं संडासी से अंगार - पात्र उठाए और दूसरा उसे हाथ में ले, यह न्याय या आत्म-तुला की बात नहीं है, पक्षपात और विषमता की बात है ।
व्यवहार परिवर्तन का सिद्धान्त
आदमी अपने लिए सुख चाहता है पर वह दूसरे की कठिनाई को नहीं समझता । वह इस नियम को नहीं जानता- मुझ पर कुछ होता है तो क्या बीतती है ? सामने वाले व्यक्ति पर भी वैसा ही बीतता होगा । हम सामने वाले प्राणी के विषय में सोचें। चाहे वह मनुष्य है, गाय है, घोड़ा है, कुत्ता है, वनस्पति या मिट्टी है । हम इस बात पर ध्यान दें-यदि मैं इस स्थान पर होता तो मुझ पर क्या बीतती ? यदि यह नियम समझ में आ जाए, आत्मसात् हो जाए तो आदमी का सारा व्यवहार बदल जाए ।
यह आत्म-तुला का सिद्धान्त, जिसका भगवान् महावीर ने प्रतिपादन किया, हमारे समूचे व्यवहार के परिवर्तन का सिद्धान्त है । जो अपने अध्यात्म के नियम को जानता है, वह बाहर के नियम को जानता है और जो बाहर के नियम को जानता है, वह अपने अध्यात्म के नियम को जानता है। बाहर या भीतर अपना या पराया- दोनों के लिए नियम समान हैं, इस बात को जानें तो व्यवहार बदल जाएगा ।
कठिन है निरीक्षण करना
वर्तमान समस्या यह है— व्यक्ति की दृष्टि में अपने एवं अपने परिवार के लिए नियम दूसरा होता है और दूसरे लोगों के लिए नियम कोई दूसरा होता है । आज जितना मिलावट का धंधा चलता है, वह दूसरों के लिए है, अपने लोगों के लिए नहीं है । इसका कारण है- व्यक्ति आत्म तुला के सिद्धान्त को नहीं जानता, इस तुला का अन्वेषण नहीं करता ।
बहुत कठिन है निरीक्षण करना, अन्वेषण करना । आदमी शॉर्टकट से जाना चाहता है । आज राजपथ इतने संकरे हो गए हैं कि उसे पगडंडी का चुनाव करना पड़ रहा है । इससे समस्या पैदा हो गई और आत्म-तुला का सिद्धान्त जटिल बन गया । दूसरों की बात छोड़ दें, धार्मिक लोग भी इस सिद्धान्त का प्रयोग नहीं करते हैं । अगर धार्मिक लोग इस तुला का प्रयोग करते तो आज मानवीय संबंधों में परिवर्तन आ जाता ।
वर्तमान समस्या
आज की सबसे बड़ी समस्या है मानवीय संबंधों में तनाव और संघर्ष | पुरानी पीढ़ी के लोग अनपढ़ थे, सहन करना जानते थे किन्तु आज लोगों की समझ बहुत बढ़ी है इसलिए उनमें संवेदनशीलता भी बढ़ी है ।
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