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पढ़ें सुख-दुःख के संवेदन
बीच बैठा है ।
गर्मी के मौसम में एक व्यक्ति ठंडी हवा के झौंको के ठंडी हवा से उस व्यक्ति को सुख मिला, तुम्हें कैसा लगा ? सामने वाले को ठण्डी-ठण्डी हवा लगी तो उसे कैसा लगा ? तुम्हें गर्म हवा लगी तो तुम्हें कैसा लगा? और उसे गर्म हवा लगी तो उसे कैसा लगा ? हम इस नियम को आगे बढ़ाएं। कल्पना करें – बहुत गर्मी का मौसम है । एक ही कमरा है और उसमें एक ही दरवाजा है । एक व्यक्ति उस दरवाजे में जाकर बैठ गया । उसे वहां बैठना कैसा लगेगा ? तुम्हें कैसा लगेगा ? दूसरा व्यक्ति उससे कहे - भीतर बैठ जाओ । उसे कैसा लगेगा ? तुम्हें कैसा लगेगा ? तुम इस नियम को पढ़ो, इस घटना का निरीक्षण करो | इसका अर्थ है - अपने एवं सामने वाले व्यक्ति के सुख-दुःख के संवेदन को पढ़ना । तुम पढ़ो, निरीक्षण करो, पढ़ते चले जाओ, निरीक्षण करते चले जाओ । पढ़ते-पढ़ते, निरीक्षण करते-करते एक क्षण वह भाएगा, जब तुम आत्म-तुला को साक्षात् कर लोगे ।
अस्तित्व और अहिंसा
आत्म-तुला का सिद्धान्त
महावीर को एक दिन में ही यह पता नहीं चला -- - जैसे मुझे सुख प्रिय और दुःख अप्रिय है वैसे ही सामने वाले प्राणी को सुख प्रिय और दुःख अप्रिय होता है । सतत निरीक्षण और अन्वेषण से महावीर ने इस नियम का पता लगाया और आत्म-तुला के सिद्धान्त की स्थापना हो गई। महावीर ने कहा- ऐसे-ऐसे भी लोग हैं, जो कहते हैं- "हमें दूसरों से क्या ? हमें अपना देखना है | हम किस-किस की चिन्ता करेंगे ?" वे दूसरों की चिन्ता नहीं करते, नौकरों, कर्मचारियों और शूद्रों की चिन्ता नहीं करते, पशु-पक्षी और सामान्य प्राणियों की चिन्ता नहीं करते । मध्यकाल में स्त्रियों के लिए तो ऐसे कड़े नियम बना दिए गए, जिनमें क्रूरता ही क्रूरता झलकती है । कारण यही रहा - आत्म-तुला के इस नियम को समझा नहीं गया ।
निदर्शन की भाषा
भगवान् महावीर ने इस सिद्धान्त को उदाहरण की भाषा में समझाया --- पचास आदमी बैठे हैं । एक सिगड़ी में अंगारे जल रहे हैं । मुखिया व्यक्ति ने एक व्यक्ति से कहा - अंगार - पात्र उठाकर अमुक व्यक्ति के हाथ में रख दो। वह व्यक्ति संडासी से अंगार-पात्र उठाकर दूसरे व्यक्ति के हाथ में रखेगा | वह सोचता है-यदि मैं अपने हाथ से अंगार - पात्र उठाऊंगा तो मेरा हाथ जल जाएगा किन्तु वह यह नहीं सोचता - हाथ से अंगार-पात्र उठाने से मेरा हाथ जलता है तो उसका भी हाथ जल सकता है । उसका हाथ भी मेरे जैसा ही है । जिस व्यक्ति में ऐसा चिन्तन जागता है, वह दूसरे के हाथ
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