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तराजू के दो पल्ले
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पकड़ लेता है । गत बर्ष ही एक भारतीय वैज्ञानिक ने एक जीवाणु का पता लगाया है । आज की बड़ी समस्या है - समुद्र में तेल वाहक जहाज चलते रहते हैं । कभी-कभी वे जहाज तूफान आदि की चपेट में आकर टकराकर टूट जाते हैं। टैंकर का सारा तेल समुद्र की सतह पर फैल जाता है। समुद्र के जल के ऊपर तेल की परत जम जाती है । समुद्र का पानी काम का नहीं रहता । वह जीवों को नुकसान भी पहुंचाता है । भारतीय वैज्ञानिक ने जिस जीवाणु का पता लगाया है, यदि उसे समुद्र में छोड़ दिया जाए तो वह समुद्र के जल पर फैले हुए तेल को खा जाएगा, समुद्र का पानी पुनः स्वच्छ बन
जाएगा ।
महत्त्वपूर्ण सूक्त
की खोज का यह कार्य सतत निरीक्षण और गहन अनुसंधान से संभव बना है । एक दो बार देखने या पढ़ने मात्र से सचाई का पता नहीं चलता । जब दृढ़ संकल्प और सतत निरीक्षण का योग होता है तब नियम या सत्य का पता चलता है । बहुत कठिन होता है नियम का पता लगाना और उसे पाना । सत्य की प्राप्ति सहज नहीं हैं इसीलिए अन्वेषण का मूल्य बना हुआ है । इस वैज्ञानिक युग में वह अधिक प्रासंगिक और मूल्यवान् सिद्ध
कहा गया- - तुला का अन्वेषण करें । प्रश्न होता है—तुला क्या है । उसका निरीक्षण-अन्वेषण कैसे करें ? आचारांग का महत्वपूर्ण सूक्त हैजे अज्झत्थं जाणई से बहिया जाणई ।
जे बहिया जाणई से अज्झत्थं जाणई ||
जो अपने आपको जानता है, वह दूसरे को जानता है । जो दूसरे को जानता है, वह अपने आपको जानता है ।
कल्पन्दा-सूत्र
कल्पना करें - दो जीव हैं । एक व्यक्ति स्वयं है और एक दूसरा आदमी है । व्यक्ति पहले अपने आपको देखे । वह सोचे- मुझे किसी ने गाली तो सुझ पर क्या प्रतिक्रिया हुई ? मेरा मन कैसा बना ? मेरे मन में क्या भावना आई ? गाली की अपने भीतर क्या प्रतिक्रिया हुई ? वह उसका निरीक्षण करें । उसी व्यक्ति ने सामने वाले व्यक्ति को गाली दी । वह देखे - इस व्यक्ति के भीतर क्या प्रतिक्रिया हो रही है ? जो अपने भीतर प्रतिक्रिया हुई क्या वैसी ही दूसरे के भीतर प्रतिक्रिया हुई ? या अन्य प्रकार की प्रतिक्रिया हुई ? व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति की प्रतिक्रिया को पढ़े और उसके संदर्भ में पुनः अपने आपको देखे, देखता चला जाए ।
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