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________________ ३४ अस्तित्व और अहिंसा करने के लिए ज्योति केन्द्र पर ध्यान करवाया जाता है। नशा छुड़ाने के लिए अप्रमाद - केन्द्र पर ध्यान करवाया जाता है । भयवृत्ति को कम करने के लिए आनन्द- केन्द्र पर ध्यान करवाया जाता है। लोभ की वृत्ति को मिटाने के लिए किस केन्द्र पर ध्यान करवाना चाहिए ? मैंने कहा - इस विषय में मैं स्वयं उलझन में हूं । अन्य वृत्तियों को बदलने के सूत्र तो हाथ लग गए हैं पर लोभ की वृत्ति को बदलने का सूत्र अभी पकड़ में नहीं आया है । कहां है दिल और दिमाग ? सबसे ज्यादा जटिल है यह लोभ की वृत्ति । सारी समस्याएं इससे पैदा हुई हैं । कैसे बदला जाए इसे ? इसी वृत्ति के कारण आदमी मंद और अज्ञानी बन रहा है । जो आदमी लोभी है, प्रसाधन चाहता है, आराम चाहता है, वह पढ़ा हुआ व्यक्ति भी मंद है । सर्दी के दिनों में दक्षिण दिशा में प्रस्थित सूरज भी मंद बन जाता है । कवि ने बहुत सुन्दर कल्पना प्रस्तुत की है. दक्षिणाशा प्रवृत्तस्य, प्रसारितकरस्य च । तेजः तेजस्विनस्तस्य, हीयतेऽन्यस्य का कथा ॥ जो लोभ की आशा में चला गया, लोभ की दिशा में चला गया, धन लोभ की दिशा में प्रस्थित दृष्टिकोण बदल जाता है, की दिशा में चला गया, वह मंद बन गया । व्यक्ति अज्ञानी बन जाता है, उसका सोचने का दिल और दिमाग बदल जाता है । रोगी डाक्टर के पास गया, बोला- दिल और दिमाग में दर्द है । 'डाक्टर ने उसे उलटा लिटाकर पीठ देखना शुरू किया । रोगी बोला - पीठ में नहीं, दिल में दर्द है । डाक्टर ने कहा- अब भारतीय लोगों का दिल सामने कहां है ? उनका दिल और दिमाग पश्चिम की ओर है, पीछे है । विचित्र घटना ऐसा लगता है --- लोभ के कारण दिल और दिमाग बदल गया है । पश्चिम की कुछ बातें जो अच्छी हैं, उन्हें हम कम अपनाते हैं । अगर मेरा अध्ययन सही है तो यह कहा जा सकता है - लोभ और संग्रह की वृत्ति जितनी भारतीय मानस में है, पश्चिम के लोगों में उतनी नहीं है । यह सात पीढ़ी तक सोचने की बात सिर्फ हिन्दुस्तान में ही है । पश्चिम का आदमी कभी ऐसी कल्पना ही नहीं करता । उसका सोचने का प्रकार ही दूसरी तरह का है । अमेरिका में आज भी एक बड़ी विचित्र घटना घट रही है । एक व्यक्ति हुआ है, बेंजामिन फ्रेंकलिन । वह प्रेस चलाता था । उसके पास बीस डॉलर कम पड़ रहे थे । उसने मित्र से सहायता मांगी। मित्र ने उसे बीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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