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यह संसार है
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डॉलर दे दिए । उसका काम चल पड़ा। उसने मित्र के बीस डॉलर वापस देने चाहे । मित्र ने कहा- मैंने तो वापस लेने के लिए नहीं दिए थे । यदि तुम देना चाहते हो तो ऐसा करो, इन्हें अपने पास रखो, कोई जरूरतमंद आए तो उसे दे देना और उसे यह कह देना, जब तक जरूरत हो तब तक वह इन्हें काम में लें । उसके बाद वे बीस डालर किसी तीसरे जरूरतमंद को ही दे दें ।
संग्रह की मनोवृत्ति
हिन्दुस्तान में संग्रह की मनोवृत्ति प्रबल है । मरते समय तक व्यक्ति यह सोचता रहता है -- मेरे पास इतना धन है । वह इस सन्तोष को लेकर मरता है ।
मानना चाहिए -- इस मनोवृत्ति से हिंसा का एक चक्र चल रहा है । हमारा सजगत् कितना सुन्दर है । पशु, पक्षी निर्विघ्न विचरते तो यह त्रसजगत्, यह संसार कितना सुन्दर होता, कृत्रिम अभयारण्य बनाने की कोई जरूरत नहीं होती । पर मनुष्य ने अपने लोभ, सौन्दर्य और लालसा की भावना के कारण भयंकर क्रूरता को जन्म दिया और संसार की सारी सुन्दरता को तहस-नहस कर दिया । आज व्यक्ति सोचता है - पर्यावरण का प्रदूषण न हो । यह उसकी कृत्रिम चिन्ता है । जब तक महावीर वाणी का मूल्यांकन नहीं किया जाएगा, अहिंसा के सिद्धान्त पर ध्यान केन्द्रित नहीं होगा तब तक न यह संसार सुन्दर रहेगा, न यह त्रससृष्टि विकास की दिशा में आगे बढ़ पाएगी और न पर्यावरण सुरक्षित रहेगा ।
यदि यह बात समझ में आए, मनुष्य का दृष्टिकोण बदले और लोभ की वृत्ति नियंत्रित बने तो समस्या से संत्रस्त संसार को समाधान की दिशा उपलब्ध हो सकती है ।
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