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यह संसार है
पश्चिमी देशों में इसकी मांग बहुत बढ़ गई है। अब इसका उपयोग शस्त्रों में होने लगा है इसीलिए इसका मूल्य बढ़ गया है। मृगों को मारने वाले अवैध तरीके से मारने लगे हैं। कस्तूरी मृग का अस्तित्व ही विलुप्त सा हो गया है। शिकारी के लिए यह एक व्यवसाय है । रुपये के लोभ ने, प्रसाधन और सौन्दर्य के लोभ ने जिस क्रूरता को जन्म दिया है, वह दिल को दहलाने वाली है। जटिल है लोभ की वृत्ति
मुवक्किल वकील से बोला--मेरा केस बड़ा जटिल था और झूठा भी था । पर आपने अपनी होशियारी से मुझे जिता दिया। मैं किन शब्दों में आपकी प्रशंसा करू ? मुझे कोई शब्द नहीं मिल रहा है। वकील बोलाकोई शब्द ढूंढने की जरूरत नहीं है । केवल एक शब्द जान लो—रुपया।
आज हाथियों को मारा जा रहा है। हाथी-दांत बेचने पर भी सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है। चाम के लिए बाघों-चीतों को मारना शुरू कर दिया गया है। जिस प्राणी से भी पैसे मिलते हैं, उसे मारा जा रहा है किन्तु यह बात नई नहीं है।
हम आचारांग सूत्र को पढ़ें । किन-किन कारणों से जीव मारे जाते हैं, उनका विशद वर्णन आचारांग सूत्र में है
कुछ व्यक्ति शरीर के लिए प्राणियों का वध करते हैं।
कुछ लोग चर्म, मांस, रक्त, हृदय, पित्त, चर्बी, पंख, पूंछ, केश, सींग, विषाण-हस्ति दंत, दांत, दाढ, नख, स्नायु, अस्थि और अस्थिमज्जा के लिए प्राणियों का वध करते हैं।
कुछ व्यक्ति प्रयोजनवश प्राणियों का वध करते हैं । कुछ व्यक्ति बिना प्रयोजन प्राणियों का वध करते हैं।
कुछ व्यक्ति (इन्होंने मेरे स्वजन वर्ग की) हिंसा की थी, यह स्मृति कर प्राणियों का वध करते हैं।
कुछ व्यक्ति (ये मेरे स्वजन वर्ग की) हिंसा कर रहे हैं यह सोचकर प्राणियों का वध करते हैं।
कुछ व्यक्ति (ये मेरे या मेरे स्वजन वर्ग की) हिंसा करेंगे, इस संभावना से प्राणियों का वध करते हैं। क्या करुणा जागेगी ?
प्रश्न है-क्या मनुष्य की वृत्तियां बदलेंगी? क्रूरता कम होगी ? क्या करुणा जागेगी? ऐसा लगता है, तब तक करुणा को जगाने का प्रयत्न सफल नहीं हो सकता जब तक लोभ को कम करने का प्रयत्न सफल न हो जाए। प्रेक्षाध्यान शिविर के दौरान एक प्रश्न प्रस्तुत हुआ-क्रोध को . कम
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