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वनस्पति जगत् और हम
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"इच्छा बढ़ाओ, उत्पादन बढ़ाओं", इस गलत अवधारणा के कारण ही वनस्पति जगत् के साथ अन्याय हो रहा है। आज विकास के कृत्रिम साधनों ने प्रकृति के साथ अन्यायपूर्ण और क्रूर बरताव शुरू किया है । इसका विराम कहां होगा, कहा नहीं जा सकता । महावीर का अहिंसा-दर्शन
हम इस सचाई को आचारांग सूत्र के संदर्भ में समझे। आचारांग सूत्र में जिन सचाईयों का उद्घाटन हुआ है, उन्हें वर्तमान में अधिक स्पष्टता से समझा जा सकता है। यही बात आज से हजार वर्ष पूर्व कही जाती तो समझने में कुछ कठिनाई होती । आज सारा विश्व उखड़ा हुआ है, समस्या से चिन्तित बना हुआ है। यदि आधुनिक संदर्भ में महावीर वाणी को प्रस्तुत किया जाए, आचारांग सूत्र का विश्लेषण किया जाए तो लगेगा-वर्तमान समस्याओं के अद्भुत समाधान पहली बार हमारे सामने आए हैं। आज महावीर की वाणी और उनका अहिंसा-दर्शन विश्व को लुभावना लग रहा है। लोग चाहते हैं-उफनते हुए दूध पर कोई ठण्डे पानी का छींटा देने वाला मिले । आज आकांक्षा की आग प्रबल बन रही है। उसे शान्त करने के लिए अहिंसा की बात, जो बनस्पति जगत् के साथ जुड़ी हुई है, ठण्डे पानी का छींटा डालने वाली बात है। विषय : आवर्त
आचारांग सूत्र का एक महत्त्वपूर्ण सूक्त है---जे आवट्टे से गुण, जे गुणे से आव?--जो विषय है, वह आवर्त है, जो आवर्त है, वह विषय है। इन अर्थशास्त्रीय आकांक्षाओं या विषयों ने इतने आवर्त पैदा कर दिए हैं, इतने भंवर बना दिए हैं कि व्यक्ति का अपनी जीवन की नौका को खेकर पार पहुंचना, कठिन हो रहा है । इस भंवर से, आवर्त से बचने वाला ही समस्याओं के चक्रव्यूह को भेदने में सफल हो सकता है। यह इतनी-सी सचाई समझ में आ जाए तो मनुष्य-जाति का बहुत बड़ा कल्याण हो सकता है ।
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