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वनस्पति जगत् और हम
प्राणशक्ति मुख्य आधार
वस्तुतः पेड़ के बिना आदमी का मन ही नहीं जगता। एक व्यक्ति को कविता बनाना है। यदि पेड़ के नीचे बैठ जाए तो अपने आप कल्पना आने लग जाएगी। पेड़ के नीचे कागज-कलम लेकर लिखना शुरू करें, कहानी बन जाएगी। जब हरा-भरा फल-फूलों से लदा हुओं वृक्ष आंखों को दिखाई देता है तो एक सूखा आदमी भी सजल बन जाता है, सरस बन जाता है।
वनस्पति हमारी प्राणशक्ति का मुख्य आधार है। किसी व्यक्ति को कुछ देर के लिए काल-कोठरी में बन्द कर दिया जाए तो उसका दम घुटने लग जाएगा। जब व्यक्ति प्रातःकाल उद्यान में भ्रमण के लिए जाता है, तब उसके तन, मन और भाव-सब स्वस्थ बन जाते हैं। मनुष्य जगत् और वनस्पति जगत् का इतना गहरा सम्बन्ध रहा है, फिर भी मनुष्य के मन में उसके प्रति करुणा का अभाव बना हुआ है। मनुष्य के मन में एक क्रूरता छिपी हुई है। जिस वनस्पति जगत् से वह इतना कुछ पा रहा है, उसके प्रति जो करुणा, कोमलता, सहृदयता, हमदर्दी और भाईचारा होना चाहिए, वह उसके मन में नहीं है। जो जीवन के साथी हैं, जीवन देने वाले हैं, उनके प्रति भी दयालुता नहीं है। यह एक विडम्बना है। आत्मतुला
भगवान महावीर ने आत्मतुला के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
महावीर ने वनस्पति और मनुष्य की जो समानताएं प्रस्तुत की हैं, उन्हें आज विज्ञान प्रमाणित कर चुका है। महावीर की भाषा में मनुष्य और वनस्पति की समानता का रूप यह हैमनुष्य
वनस्पति मनुष्य जन्मता है
वनस्पति भी जन्मती है मनुष्य बढ़ता है
वनस्पति भी बढ़ती है मनुष्य चैतन्ययुक्त है
वनस्पति भी चैतन्ययुक्त है मनुष्य छिन्न होने पर क्लान्त । वनस्पति भी छिन्न होने पर क्लान्त होता है
होती है मनुष्य आहार करता है वनस्पति भी आहार करती है मनुष्य अनित्य है
वनस्पति भी अनित्य है मनुष्य अशाश्वत है
वनस्पति भी अशाश्वत है मनुष्य उपचित और अपचित वनस्पति भी उपचित और अपचित होता है
होती है मनुष्य विविध अवस्थाओं को वनस्पति भी विविध अवस्थाओं को प्राप्त होता है
प्राप्त होती है
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