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________________ अस्तित्व और अहिंसा अभय का अवदान ___ महावीर ने कहा-सब जीवों को अपने समान समझो। वनस्पति के सन्दर्भ में भी उनका यही प्रतिपादन था-'तुम देखो ! वनस्पति दूसरे जीवों की अपेक्षा तुम्हारे अधिक निकट है। पृथ्वी, अप, तेजस्, वायु आदि के जीवों को समझना कुछ कठिन है किन्तु वनस्पतिकाय को समझना आसान है। तुम इसे समझो, इस पर मनन करो । मनन कर अभय-दान दो।' जिससे तुम्हें जीवन मिल रहा है, उसे भी तुम भय दे रहे हो। तुम उसे सताना छोड़ दो। यह सत्य है तुम्हारी आवश्यकताएं उस पर निर्भर है । तुम खाए बिना नहीं रह सकते किन्तु तुम कम से कम उसे अनावश्यक मत सताओ। मन में यह भावना रखो-यह हमारा उपकार करने वाला जगत् है। उसके प्रति तुम्हारा जो क्रूर व्यवहार होता है, उसके लिए क्षमा याचना करो। तुम्हें आवश्यकतावश किसी पेड़ की टहनी को काटना पड़ा है, किसी वनस्पति को खाना पड़ा है तो तुम उसके प्रति मन में क्षमा याचना करो। तुम्हारे मन में यह भाव जागे---विवशता के कारण मैं वनस्पति जगत् का उपयोग कर रहा हूं। मेरी विवशता के लिए वह मुझे क्षमा करे। यह भाव कृतज्ञता का भाव होगा।' बीमारी का कारण महावीर ने जो कहा, उसका हार्द है-वनस्पति जगत् के प्रति करुणा, सहयोग, सहृदयता, कृतज्ञता और क्षमायाचना का भाव होना चाहिए । बहुत सारे लोग पेड़ों को काटकर बीमार पड़ जाते हैं। उन्हें पता ही नहीं चलता-~यह बीमारी क्यों आई ? जापान का एक रहस्यविद् हुआ है-डा० हिरोशी मोकोयामा । उसने एक रोगी को देखा। उसकी बीमारी का कोई पता नहीं चला। मोकोयामा ने पूछा----'तुम्हारी सास की मौत 'हां।' 'तुम्हारे घर के सामने कोई पुराना पेड़ है ?' 'हां।' 'बस, यही है तुम्हारी बीमारी का कारण। कुछ लोग उस पेड़ को काटना चाहते हैं। उस पेड़ में एक पवित्र आत्मा रहती है और उसी की चेतावनी है तुम्हारी यह बीमारी ।' डॉक्टर की बात सही निकली। कुछ दिनों बाद तूफान आया और वह पेड़ उखड़ गया। उसने उसी स्थान पर एक नया पेड़ लगा दिया। उसी दिन से बामारी ठीक होने लगी और कुछ ही दिनों में वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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