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अस्तित्व और अहिंसा
व्यक्त न कर पाएं।
आचारांग सूत्र में इन उदाहरणों के द्वारा सूक्ष्म जीवों की संवेदना को व्यक्त किया गया है। आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोग इस संवेदना के तथ्य को और स्पष्ट कर रहे हैं । इस सुख-दुःख की अनुभूति के बारे में 'मॉडर्न रिसर्च' पुस्तक में जो व्यापक विश्लेषण किया गया है, उससे यह धारणा स्पष्ट हो जाती है कि सूक्ष्म जगत् में इन्द्रिय चेतना और उससे परे अतीन्द्रिय चेतना का अस्तित्व विद्यमान है। अतीन्द्रिय चेतना : जागरण का सूत्र
हमारे सामने दो जगत् हैं—सूक्ष्म जगत् और स्थूल जगत् (दृश्य जगत) । स्थूल जगत् व्यक्त चेतना वाला जगत् है और सूक्ष्म जगत् अव्यक्त चेतना वाला जगत् है। अव्यक्त चेतना का अर्थ है—सूक्ष्म जीवों की इन्द्रियां व्यक्त नहीं हैं किन्तु उनकी अन्तर् चेतना तीव्र है। आज भी मनुष्य ने अपनी इन्द्रियों को पाकर कुछ खोया भी है। उसने अपनी अतीन्द्रिय चेतना के दरवाजे बंद कर लिए हैं। प्रत्येक व्यक्ति के पास इन्द्रियातीत चेतना है। हम उसे प्रातिभ-ज्ञान कहें या प्रज्ञा कहें, वह प्रत्येक मनुष्य के पास है। जरूरत है सूक्ष्म नियमों को जानने की, एकाग्र होने की और इन्द्रियों से कम काम लेने की। अतीन्द्रिय चेतना के जागरण के लिए एक संतुलन अपेक्षित है। यदि हम इन्द्रिय-प्रतिसंलीनता का सूत्र सीख जाएं तो हमारी अतीन्द्रिय चेतना जाग सकती है, सूक्ष्म जगत् के सूक्ष्म प्राणियों के साथ हमारा तादात्म्य स्थापित हो सकता है।
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