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________________ क्या सूक्ष्म जीव. सुख-दुःख का संवेदन करते हैं ? के प्रति संयम करो। जीव-संयम तब आवश्यक लगा जब सूक्ष्म सचाइयों को जाना गया। आज हमारे सामने लाई डिटेक्टर, पोलीग्राफ आदि बहुत से यन्त्र हैं किन्तु उस समय सूक्ष्म बातों को जानने का कोई यन्त्र नहीं था। केवल अपनी अतीन्द्रिय चेतना से सारी बातों को पकड़ा गया। महावीर ने कहा-~-तुम देखो। वनस्पति आदि में अव्यक्त चेतना है । उनकी चेतना व्यक्त नहीं है। उन्हें कष्ट कैसे होता है ? सुख की अनुभूति कैसे होती है ? इसे स्थूल उदाहरण की भाषा में समझाया। उन्होंने कहा-एक आदमी आंख से अंधा है, वाणी से मूक है और कानों से बहरा है । आंख और कान-इन दो इन्द्रियों के न होने का मतलब है जगत् से सम्पर्क का विच्छेद । आंख से देखकर या कान से सुनकर हम अपनी भावना व्यक्त करते हैं । जीभ से बोलकर हम अपनी बात कहते हैं। जो व्यक्ति अंधा भी है, बहरा और मूक भी है, वह न बोल सकता है, न देख सकता है, न सुन सकता है। ऐसे प्राणी को अगर कोई सताता है तो क्या उसे कष्ट होता है ? हां भंते ! होता है। कैसे होता है ? भंते ! कष्ट होता ही है पर वह उसे प्रगट नहीं कर सकता। भगवान ने कहा-इसी प्रकार सूक्ष्म जीवों को चोट पहुंचाने पर कष्ट होता है किन्तु उनके पास न कान है, न आंख है और न जीभ है। उनके पास ऐसा कोई साधन नहीं है, जिससे वे अपनी वेदना को अभिव्यक्ति दे सकें । उनमें भी निरंतर प्राणधारा बह रही है, इसलिए वेदना तो होगी _ आज के वैज्ञानिकों ने प्राणधारा का नाम दिया है-कॉस्मिक रेजागतिक प्राणशक्ति । उसे सब प्राणी भोग रहे हैं। संदर्भ मूच्छित व्यक्ति का 'आयतुले पयासु'--प्रत्येक प्राणी को अपनी आत्मा के समान समझो, यह अनुभूति जिन्हें हो गई, उनके लिए हिंसा करना असंभव हो गया। हम वनस्पति की बात छोड़ दें, आज आदमी आदमी को ही मार रहा है। महावीर ने दूसरा उदाहरण दिया--एक आदमी मूच्छित हो गया। प्रश्न हैमूर्छा में उसे कष्ट होता है या नहीं ? हमें इसका पता नहीं चलता, पर अन्तःचेतना में वह कष्ट का वेदन जरूर करता है । एक ज्ञान की शक्ति होती है, जो मूच्छित अवस्था में भी बात को पकड़ लेती है। इसी आधार पर उन्होंने कहा—जैसे मूच्छित आदमी कष्ट का अनुभव करता है, उसे व्यक्त नहीं कर पाता, वैसे ही सूक्ष्म जीव कष्ट का अनुभव करते हैं, चाहे वे उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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