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________________ अस्तित्व और अहिंसा अर्थ है-ओघ संज्ञा । आज के विज्ञान ने इस बात को कैसे पकड़ा, यह आश्चर्य का विषय है। वैज्ञानिकों ने माना है-वनस्पति में कलेक्टिव माइण्ड (ओघ संज्ञा) होता है। वनस्पति के जीव बात को इतने विचित्र ढंग से पकड़ते हैं, जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। इस विषय में दो वैज्ञानिकों--डाक्टर बोगेल और डाक्टर बेकस्टर ने बहुत प्रयोग किए। बोगेल ने अपने प्रयोगों में देखा-मनुष्य और पौधे ने एक दूसरे में अपनी चेतना का आदान प्रदान करते हैं । बेकस्टर ने एक दिन पौधों पर प्रयोग शुरू किए । उसने पोलिग्राफ के संवेदनशील तार से पौधे की शाखा को जोड़ दिया। पौधे ने अपनी भावना जतानी शुरू की। गेल्वेनोमीटर की सूई घूमने लगी। उसने देखा—पौधा प्यासा है। उसने पानी डाला। पूनः सूई घूमी, पौधे ने अपना हर्ष प्रकट कर दिया। उसने सोचा--पौधों से और भी बातें करनी चाहिए । पौधों को आवेश में लाने के लिए उसने एक पत्ती को तोड़ा और उसे कॉफी में डाल दिया। कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हुई। उसने सोचा-इसे जला डालू । यह चिन्तन आया और गेल्वेनोमीटर की सूई घूमने लगी। बेकस्टर को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसे पूरा भरोसा हो गया कि पौधा हर बात को पकड़ता है। प्रयोग साम्यवादी देशों के पौधा हमारे मस्तिष्क के भावों को भी पकड़ लेता है, हजारों प्रयोगों के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। इस संदर्भ में वैज्ञानिकों ने बड़े विचित्र प्रयोग किए हैं। सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी ने पौधों को अपनी पार्टी का सदस्य घोषित किया है । अन्य साम्यवादी देशों में भी परिवर्तन हुए हैं, दृष्टिकोण बदला है । जैसे-जैसे पेरासाइकोलोजी का विकास हुआ, वनस्पति जगत् के प्रयोग सामने आए, सूक्ष्म सत्यों का पता चला तो आस्थाएं हिल गई। कई बार विरोध का स्वर उभरा-इन प्रयोगों को बंद कर दिया जाए अन्यथा मार्क्सवाद की जड़ें उखड़ जाएंगी। हम जब तक इन्द्रिय जगत् में, स्थूल जगत् में रहते हैं तब तक हमारी धारणाएं चार्वाक की धारणाएं बनी रहती हैं-- हमें कोई लेना देना नहीं है, मजे में रहना है, जो चाहें करें, इसी में जीवन का सार है। किन्तु जब हम सूक्ष्म सत्यों को जानते हैं, हमारी धारणाएं बदल जाती हैं, हमारा दायरा बड़ा हो जाता है। व्यक्ति का जीवन बदल जाता है । वह सोचता है-इस दुनियां में दूसरे भी हैं, मैं अकेला ही नहीं हूं, इसलिए मुझे संयम करना चाहिए । जीव-संयम का प्रश्न महत्त्वपूर्ण प्रश्न है-यह जीव-संयम और अजीव-संयम का सिद्धान्त क्यों आया ? यह जीव-संयम का सिद्धान्त पर्यावरण का सिद्धान्त है। जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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