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क्या सूक्ष्म जीव सुख-दुःख का संवेदन करते हैं ?
शरीर का एक अणु जितना हिस्सा भी ऐसा नहीं है, जिसमें सूक्ष्म जीव नहीं हैं। प्रश्न पूछा गया—इस अंगुली में कितनी काय के जीव हैं ? उत्तर दिया गया-यह स्वयं तो जीव है ही परन्तु असंख्य सूक्ष्मकाय जीव भी इसमें हैं। इसमें पृथ्वीकायिक भी हैं, अकायिक भी हैं, तैजसकायिक और वायुकायिक भी हैं, वनस्पति कायिक भी हैं। कहा गया-एक सूई की नोक टिके, उतने भाग में अनंत जीव हो सकते हैं । निगोद जीवों के संदर्भ में एक दोहा सुनाया जाता था, उसमें इसी सचाई की प्रतिध्वनि है---
सूई अग्र निगोद में, श्रेणी असंख्याती जाण, असंख्याता प्रतर इक श्रेणी में, इम गोला असंख्याता प्रमाण । एक एक गोला मझे शरीर असंख्याता जाण,
एक एक शरीर में, जीव अनंत प्रमाण ॥ प्रश्न संवेदन का
सारा संसार जीवों से भरा पड़ा है। जब तक अहिंसा की बात करने वाला इस सचाई को न जान ले, सूक्ष्म जीवों के नियमों को न जान ले तब तक वह अहिंसा की बात को पूरा कैसे जानेगा? इसीलिए कहा गया-जो जीव को नहीं जानता, अजीव को नहीं जानता, वह संयम और अहिंसा को कैसे जानेगा ?
जो जीवे वि न याणाई, अजीवे वि न याणई । जीवाजीवे अयाणंतो, कहं सो नाहिइ संजमं ॥
पहले यह ज्ञान कर लेना आवश्यक है कि जीव क्या है ? अजीव क्या है ? जीव और अजीव क्या है ? यह जानने के बाद अहिंसा की बात सहज समझ में आ सकती है।
___ एक प्रश्न और उभरता है--जो सूक्ष्म जीव हैं वे संवेदनशील हैं। क्या उन्हें सुख-दुःख होता है ? सूक्ष्म जीव अत्यन्त सूक्ष्म हैं, एक मिट्टी की डली में असंख्य जीव हैं, वनस्पति के छोटे से कतरे में असंत जीव हो सकते हैं । उनकी चेतना भी व्यक्त नहीं है। क्या उन्हें सुख-दुःख का संवेदन होता है ? इस प्रश्न पर भी अहिंसा के संदर्भ में विचार किया गया। इन सूक्ष्म जीवों को सुख-दुःख का संवेदन होता है, यह समझना भी बड़ा कठिन था। भगवान महावीर ने कहा-यह सही है कि इन छोटे जीवों की चेतना अव्यक्त होती है। इनमें इन्द्रिय भी एक होता है-स्पर्शन, फिर भी इन्हें सुख और दुःख का संवेदन होता है। इनमें मन नहीं होता परन्तु अनिन्द्रिय ज्ञान होता है। अनिन्द्रिय ज्ञान : दो अर्थ
अनिन्द्रिय ज्ञान के दो अर्थ हैं । उसका एक अर्थ है-मन और दूसरा
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