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क्या सूक्ष्म जीव सुख-दुःख का संवेदन करते हैं ?
सिद्धान्त षड्जीवनिकाय का
आचार का मुख्य तत्त्व है अहिंसा - किसी को मत सताओ, किसी को उत्पीड़ित मत करो, किसी को मत मारो। अहिंसा से पहले ज्ञान की बात आती है । जब तक जीव और अजीव का सम्यग् ज्ञान नहीं होता तब तक अहिंसा की चर्चा ही नहीं की जा सकती । मनुष्य और पशु को मत मा, यह एक स्थूल बात है । हमारा जगत् मनुष्य और पशु का जगत् ही नहीं है, यह प्राणियों का जगत् है । कितने प्राणी हैं ? यह ज्ञान सबसे पहले जरूरी है । इस विषय में कहा जा सकता है— पूरे तात्त्विक जगत् में भगवान महावीर ने सबसे अधिक सूक्ष्मता से जीवों का प्रतिपादन किया ।
षड् जीवनिकाय एक दुर्लभ विषय है । सकता है । यह किसी भी दूसरे दर्शन में प्राप्त कीड़े जैसे छोटे जीवों तक बहुत तत्वज्ञ पहुंचे हैं तक भी पहुंचे हैं, उन्होंने वनस्पति को भी जीव माना है । हो महावीर की अवधारणा के बाद ही इस तथ्य को स्वीकारा गया यह षड् जीवनिकाय का सिद्धान्त कहीं भी मान्य नहीं है, किसी मान्य नहीं है ।
सर्वज्ञता का प्रमाण
इसे अलौकिक भी कहा जा नहीं है । मनुष्य, पशु तथा और कुछ तत्वज्ञ वनस्पति
सकता हैहो । किन्तु भी दर्शन में
आचार्य सिद्धसेन ने लिखा है-भंते ! आपकी सर्वज्ञता को प्रमाणित करने के लिए एक षड् जीवनिकाय का सिद्धान्त ही पर्याप्त है । दूसरा कोई साक्ष्य देने की मुझे जरूरत ही नहीं है
य एव षड्जीवनिकायविस्तरः परैरनालीढपथस्त्वयोदितः । अनेन सर्वज्ञपरीक्षणक्षमास्त्वयि प्रसादोदय सोत्सवाः स्थिताः |
सर्वज्ञता के बिना षड्जीवनिकाय के सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया जा सकता । दूसरे दार्शनिकों ने पांच भूतों को स्वीकार किया - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश । भगवान् महावीर ने इन्हें भूत नहीं माना, आकाश को छोड़कर सबको जीव मान लिया । पृथ्वीकाय जीव हैं, अध्काय, तैजसका और वायुकाय भी जीव हैं। ये चारों जीवनिकाय हैं। पांचवां, जीवनकाय है वनस्पति और छट्टा जीवनिकाय है स | जीवों की छह राशियां और छह श्रेणियां हैं ।
इनमें सारे जीव
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