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आचार-शास्त्र
होना ही बंध का कारण है और पुद्गल का वियोग होना ही मोक्ष का कारण है।
आचार्य हेमचन्द्र ने बहुत थोड़े में बंध और मोक्ष का मार्ग प्रस्तुत कर दिया--
आश्रवो भवहेतुः स्यात्, संवरो मोक्षकारणम् ।
इतीयमाहती दष्टिरन्यदस्याः प्रपञ्चनम् ॥ कर्म का आना बंध का हेतु है, कर्म का आना रुक जाना मोक्ष का हेतु है । यही जैनदृष्टि का सार है। शेष सारा इन दो तत्त्वों का विस्तार है।
इस श्लोक में पूरे आचारांग का सार सन्निहित है, आचार-शास्त्र का सार सन्निहित है।
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