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________________ तब मौन हो जाएं २१३ कलह-मुक्ति का प्रयोग भगवान् महावीर ने इस सारे संदर्भ में कहा---जिसमें समझाने की क्षमता हो, जो समझा सके, जिसे समझाया जा रहा है, उसमें समझने की योग्यता हो, समझने का वातावरण हो-ये सारी बातें हों तब मुनि अपनी बात समझाए, अन्यथा मौन हो जाए। महावीर ने कहा—तुम यह देखो, जिसे मैं समझा रहा हूं, वह पुरुष कौन है, किस दर्शन का अनुयायी है । तुम यह जानो और फिर धर्म-कथा करो। किसी अन्य धर्म के सिद्धान्त या इष्ट व्यक्ति का अनादर करने पर कोई व्यक्ति क्रुद्ध हो सकता है, कलह की स्थिति उत्पन्न कर सकता है । बहुत जगह मौन करना अच्छा होता है। जहां मौन का प्रसंग आए वहां मौन कर लें तो सारी विग्रह की संभावना ही समाप्त हो जाती है। कलह का निवारण किससे होता है ? कलह-निवारण का सर्वोत्तम उपाय है मौन । मैंने पचासों व्यक्तियों को यह सलाह दी---जब कलह का प्रसंग आए, तुम मौन हो जाओ। यह प्रयोग बहुत सफल प्रमाणित हुआ। यह प्रयोग भी बहुत सार्थक हो सकता है---जब कभी कलह का प्रसंग आए, घर में कलह की स्थिति बने तो पांच-दस मिनट खेचरी-मुद्रा के साथ दीर्घ श्वास प्रेक्षा का प्रयोग करें। व्यक्ति खेचरी-मुद्रा करेगा तो बोल नहीं पाएगा । पांच मिनट न बोलने का परिणाम होगा कलह की समाप्ति । पांच मिनट का मौन कलह के अवसर को ही मिटा देता है। मौन : विभिन्न संदर्भ हम अपने सारे जीवन का अवलोकन करें, हमें लगेगा हमारे जीवन में मौन के बहुत संदर्भ हैं, बहुत प्रसंग और बहुत परिप्रेक्ष्य हैं। संस्कृत साहित्य में मौन के अनेक संदर्भ उपलब्ध होते हैं । कहा गया--'मौनं सर्वार्थसाधनम्'---मौन प्रयोजन की सिद्धि करने वाला है। किसी व्यक्ति की बात सुनकर हम मौन हो जाते हैं तो उसे स्वीकृति सूचक माना जाता है—'मौनं सम्मतिलक्षणम्'--मौन का अर्थ है--सहमत होना। मौन कहां करना चाहिए, इस संदर्भ में संस्कृत विद्वान् ने कहा है-'दर्दुराः यत्र वक्तारः तत्र मौनं हि शोभनम्'---यह रूपक की भाषा है—जहां मेंढक बोलने वाले हों, वहां मौन ही शोभास्पद हो सकता है। इसका तात्पर्य है—जहां मूर्ख लोग बोलने वाले हों, वहां मौन हो जाएं । जहां ज्ञानी लोगों की परिषद् होती है वहां अज्ञानी लोगों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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