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________________ अस्तित्व और अहिंसा होती हैं । जब व्यक्ति आवेश से भरा हुआ होता, आचार्य मौन रहते। जब उसके मन का गुब्बार निकल जाता, उसके भीतर जमा आक्रोश बह जाता तब आचार्य उसे संबोध देकर सही मार्ग पर अवस्थित कर देते। आचार्य तुलसी के जीवन में भी ऐसे अनेक प्रसंग आए हैं। मैंने देखा-आचार्यश्री अनेक उत्तेजनापूर्ण स्थितियों में मौन रहे हैं । यदि वे मौन नहीं रहते तो स्थिति संभलने के बजाय बिगड़ जाती। मौन विग्रह की स्थितियों में शांति का कारण बन जाता है । अनाग्रह का दृष्टिकोण भगवान् महावीर ने जो विवेक दिया, उसका तात्पर्य है—मुनि बोले या मौन करे किन्तु उसका लक्ष्य होना चाहिए-सत्य की सुरक्षा। महावीर ने ऐसे सत्य वचन का भी निषेध किया, जो प्राणी को उपघात पहुंचाने वाला हो । उन्होंने अहिंसा और सत्य के संदर्भ में भाषा-विवेक का दर्शन दिया । न्यायदर्शन का सिद्धान्त था-चाहे जैसा वाणी का प्रयोग करें, छल या कपट करें पर वादी को जीत लें। भगवान् महावीर ने इस सिद्धान्त को मान्य नहीं किया। महावीर ने कहा--तुम्हारे सामने कोई प्रश्न आए, तुम्हें उसका उत्तर ज्ञात हो, या तुम उस प्रश्न का उत्तर दे सकते हो तो दो, अन्यथा मौन हो जाओ। अथवा यह कह दो—-मैं नहीं जानता, आप मेरे आचार्य से इस प्रश्न का समाधान प्राप्त कर लें। किन्तु जैसे-तैसे जीतने या समाधान देने की बात ठीक नहीं है। महत्त्वपूर्ण सूत्र महावीर ने अनाग्रह-वृत्ति के साथ यह बात बतलाई। यह कितना अनाग्रह का दृष्टिकोण है-मैं इस विषय में नहीं जानता, आप किसी दूसरे से परामर्श करें । हम किसी विषय को लेकर विवाद न करें, अपनी बात का आग्रह न करें, अपनी बात को दूसरों पर थोपने का प्रयत्न न करें। हम सामने वाले व्यक्ति की मन:स्थिति को देखें, विवाद और विग्रह की स्थिति लगे तब मौन हो जाएं, यह कलह से बचने का बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र है । वस्तुतः चर्चा करना, प्रश्नोत्तर करना, शास्त्रार्थ करना कोई सामान्य बात नहीं है । इसके लिए पूरी तैयारी चाहिए। यह एक शुद्धनीति की बात हैजिस विषय की पूरी तैयारी हो, समग्र जानकारी हो, हम उसी विषय पर साधिकार चर्चा करें। जिस विषय की जानकारी नहीं है, जिस विषय में हम चर्चा करने में सक्षम नहीं हैं, उस विषय को लेकर हमें किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहिए, चर्चा-परिचर्चा में नहीं उलझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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