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अवधूत दर्शन
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समता : आत्म-दर्शन
बौद्धतंत्र में ललना को प्रज्ञा-स्वभावा माना गया है। इसका अर्थ है--इड़ा प्रज्ञा स्वभाववाली है। जब प्रज्ञा जागती है तब समता की चेतना का जागरण होता है । हम सामायिक और समता की बात बहुत करते हैं किंतु जब तक हमें अवधूत दृष्टि नहीं मिलती, संस्कारों को प्रकंपित करने वाली निर्जरा की दृष्टि नहीं मिलती तब तक समता की चेतना नहीं जागती, विषमता के जो गहरे संस्कार जमे हुए हैं, वे छूटते नहीं है। ईगो और अहं व्यक्ति को सताता रहता है । फ्रायड ईगो तक पहुंचे । यूंग ईगो से परे गए, आत्मा के निकट पहुंए गए । आत्मा के निकट पहुंचे बिना समता की बात आती नहीं । वह आत्म-दर्शन के साथ ही आती है। धुतवाद : अनेक प्रयोग
यह अवधूत का दर्शन एक नया जीवन-दर्शन है, प्रज्ञा और समता के जागरण का दर्शन है। जीवन में जब अवधूत का दर्शन घटित होता है तभी सही अर्थ में धुत होता है । वस्त्र का धुत, परिवार का धुत, सर्दी-गमीं का धुत-ये कुंडलिनी शक्ति को जगाने के बड़े प्रयोग हैं। वस्त्र रखना या न रखना-यह एक अलग बात है किन्तु इस बात पर ध्यान दें-वस्त्र रखने से प्रकृति के साथ सम्पर्क में जो एक बाधा आती है, वस्त्र न रखने से वह बाधा हट जाती है। अचेल अवस्था में प्रकृति के साथ जो सीधा सम्पर्क होता है, चेतना के जागरण का जो अवसर उपलब्ध होता है, वह सवस्त्र अवस्था में नहीं मिलता । श्मशान का भी धुत होता है । श्मशान में जाकर ध्यान करना साधना का एक विशिष्ट प्रयोग है । जैन आगम साहित्य में श्मशान-प्रतिमा का उल्लेख है। एक रात्रिकी श्मशान प्रतिमा को सहन करना मुश्किल है। वह भयंकर साधना है। यह अनिवार्य है कि श्मशान प्रतिमा में कोई न कोई विध्न अवश्य आएगा। जो व्यक्ति उसे सहन कर लेता है, उसे विशेष सिद्धि मिलती है और जो विचलित हो जाता है, वह पागल बन जाता है। अवधूत दर्शन : निष्कर्ष
अवधूत का दर्शन है-चेतना का ऊर्धारोहण हो, प्रज्ञा और समाधि जागे, समता की चेतना जागे। अवधूत दर्शन का निष्कर्ष है-आत्मा तक पहुंचना है तो चेतना को ऊपर ले जाना होगा। हमारी चेतना नाभि से जितनी ऊपर-ऊपर रहेगी उतना ही सहज सुख, सहज आनन्द और सहज शक्ति का जागरण होगा। हमारी चेतना नाभि के आस-पास या उससे नीचे केन्द्रित रहेगी तो स्वाभाविक सुख और आनन्द समाप्त हो जाएगा। जिन लोगों ने आनन्दकेन्द्र, दर्शनकेन्द्र या ज्योतिकेन्द्र पर लम्बे समय तक ध्यान का प्रयोग किया है, वे जानते हैं--भीतर कितना सुख है ! उस सुख को पाने
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