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अवधूत दर्शन
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क्या है ? उसके पास न मकान है, न कपड़े हैं, न खाने की व्यवस्था है, न रहने की व्यवस्था है फिर इतना सुख कहां से आता है ? अपने भीतर इतना सुख है, जो देवताओं को भी नहीं है। हम इस आगम की बात को, जो अनुभव की बात है, काल्पनिक नहीं मान सकते। इसका वर्णन महावीथी में भी मिलता है। शैव तंत्र का शब्द है महापथ और आचारांग का शब्द हैमहावीथी। यह महावीथी क्या है ? इसका रहस्य क्या है ? अवधूत, महावीथी आदि शब्दों के पीछे जो रहस्य था, वह छूट गया। कोरे शब्द रह गए, अर्थ की भावना विस्मृत हो गई। अवधूत थे आचार्य भिक्षु
अवधूत का दर्शन समता का दर्शन है, कुंडलिनी शक्ति के जागरण का दर्शन है, सुषुम्ना के उद्घाटन का दर्शन है, चेतना के ऊर्वारोहण का दर्शन है। जब चेतना ऊपर चली जाती है, सारी स्थितियां बदल जाती हैं।
इस दुनियां में अनेक विलक्षण संत हुए हैं। प्रश्न है-संतो में विलक्षणता कैसे आती है ? विलक्षणता का रहस्य क्या है ? वह विलक्षणता आती है-क्षण-दर्शन से, अवधूत बनने से। संतों का जीवन उल्टा होता है । हम आचार्य भिक्षु का जीवन पढ़ें, एकनाथ या नामदेव का जीवन पढ़ें, कबीर का जीवन पढ़ें। उनके जीवन की बातें असामान्य ही मिलती हैं। एक व्यक्ति ने आचार्य भिक्षु से कहा-आपका मुंह देखने वाला नरक में जाता है। आचार्य भिक्षु यह सुनकर भी शांत बने रहे। उन्होंने पूछा-तुम्हारा मुंह देखने वाला कहां जाता है ? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया--स्वर्ग में। आचार्य भिक्षु बोले- यह मेरे लिए बहुत अच्छा रहा। यह बात वही व्यक्ति कह सकता है, जिसका जीवन अवधूत बन गया है। अवधूत हैं आचार्य तुलसी
कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो साधना करके आते हैं, और कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो वर्तमान में साधना कर अवधूत बनते हैं। अवधूतों का दर्शन अपने आप में बड़ा विचित्र होता है।
भिवानी में कुछ व्यक्ति आचार्य श्री के पास आए। उन्होंने कहाआचार्य जी ! हम आपसे शास्त्रार्थ करना चाहते हैं।
___आचार्य श्री ने कहा-यह शास्त्रार्थ का जमाना नहीं है। आप शास्त्रार्थ क्यों करना चाहते हैं ?
हमारा विशेष प्रयोजन है। आचार्य श्री ने पूछा-आप चाहते क्या हैं ?
वे व्यक्ति आर्यसमाज से संबंद्ध थे, भले आदमी थे। उन्होंने सचाई प्रकट करते हुए कहा-आचार्यजी ! हम आपको हराना चाहते हैं।
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