________________
जब निष्क्रमण अपना अर्थ खो देता है
१६५
संकल्प, लक्ष्य और श्रद्धा
सफलता का सूत्र है श्रद्धा की निरन्तरता । जो व्यक्ति श्रद्धा को निरंतर बढ़ाता रहता है, वह अपने लक्ष्य में अवश्य सफल हो जाता है। श्रद्धा की निरन्तरता में बहुत बड़ी बाधा है मन की चंचलता। श्रद्धा की सघनता बनी रहे, जिस विषय को पकड़ें, उसे निरन्तर तन्मयता के साथ पकड़े रहें, छोड़ें नहीं । सफलता शीघ्र मिल जाएगी। व्यक्ति ने ध्यान का आज एक प्रयोग किया, कल दूसरा प्रयोग किया, कुछ दिन बाद तीसरा प्रयोग शुरू कर दिया। इस प्रकार पचास प्रयोग करने वाला व्यक्ति किसी भी प्रयोग में सफल नहीं हो पाएगा। यदि एक व्यक्ति एक ही प्रयोग करे, दीर्घश्वास प्रेक्षा का प्रयोग करे
और उसे साधता चला जाए तो यह एक प्रयोग उसे लक्ष्य तक पहुंचा सकता है, पचास प्रयोग नहीं पहुंचा सकते। श्रद्धा का नियोजन, एकाग्रता और एक लक्ष्य बना रहे, यह आवश्यक है। लक्ष्य में भटकाव न हो, मनुष्य उस पर टिका रहे तो वह जीवन में सफल हो सकता है। एक व्यक्ति यात्रा के लिए प्रस्थान करता है किन्तु वह तभी अपने गंतव्य पर पहुंच पायेगा जब वह निरन्तर चलता रहे, सही दिशा में चलता रहे। संकल्प, लक्ष्य और श्रद्धा बदलती रहे तो आदमी कहीं नहीं पहुंच पाएगा। जीवन की लगाम
सफलता का दूसरा सूत्र है-धृति । धृति प्रबल होनी चाहिए। धृति में दुर्बलता आती है तो पैर अटक जाते हैं। उस व्यक्ति का निष्क्रमण अच्छा नहीं होता, जिसकी धृति कमजोर हो जाती है। चाणक्य अनेक युद्ध हार गया, सेना बिखर गई, अनेक गांव-नगर उसके हाथ से निकल गए पर वह निराश नहीं हुआ । सब कुछ चले जाने पर भी उसमें धृति बनी रही । उसका परिणाम था---एक दिन ऐसा आया, चाणक्य ने नन्द के महान् साम्राज्य को ध्वस्त कर दिया।
सफलता की शक्ति है धृति । यदि संकल्पशक्ति को काम में लेने वाला यह भावना करें-मेरी धृति मेरे पास बनी रहे तो वह जीवन में कभी असफल नहीं होगा। एक धृति बनी रहती है तो सारी बाधाएं पार हो जाती हैं, नियमन करने की शक्ति उपलब्ध हो जाती है। अपनी आत्मा की लगाम जिसके हाथ में रहती है, वह कभी धोखा नहीं खा सकता। जिसके हाथ में धृति है, उसके हाथ में जीवन की लगाम है। उसके सहारे आदमी अपने जीवन को ठीक चला सकता है। निष्क्रमण भी उसी व्यक्ति का सफल होता है, जिसके हाथ में धृति होती है । अप्रमाद
सफलता का तीसरा सूत्र है-अप्रमाद । आलस्य और प्रमाद ने न
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org