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चार-शास्त्र
श्न है, वह नैतिकता से जुड़ा हुआ है। आचार स्वगत, स्वनिष्ठ होता है । चत्रकार का कौशल
एक राजा ने कल्पना की-मुझे ऐसी चित्रशाला बनानी है, जैसी आज तक किसी ने नहीं बनाई । राजा समर्थ था। उसने मंत्री को आदेश दिया-चित्रकारों को बुलाओ। देशभर के चित्रकारों को इकट्ठा किया गया, उनकी परीक्षा ली गई । उनमें से दस श्रेष्ठ चित्रकारों को चुना गया। उनसे कहा गया---छह माह का समय है, चित्रशाला को तैयार करना है।
चित्रकारों ने कहा--राजन् ! इतना विशाल कार्य इतने स्वल्प समय में कैसे संभव है ?
राजा ने कहा- यह सब कर सकते हो तो करो, वरना चले जाओ। समय इससे अधिक नहीं मिलेगा । आखिर दो चित्रकार तैयार हुए। उन्होंने कहा-महाराज ! आधा-आधा कक्ष हम दोनों में बांट दीजिए। : राजा ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उसने दोनों चित्रकारों में
आधी-आधी चित्रशाला बांट दी। बीच में एक पर्दा लगा दिया गया। दोनों में से कोई भी एक दूसरे को नहीं देख सके, ऐसी व्यवस्था हो गई। चित्रकारों ने अपना-अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया। छह महीने बीत गए । राजा को सूचित किया गया ---चित्रशाला तैयार है। राजा ने सभासदों, गणमान्य व्यक्तियों को चित्रशाला देखने हेतु आमंत्रित किया। दूसरे दिन प्रातःकाल राजा सभासदों के साथ नवनिर्मित चित्रशाला देखने पहुंचा। चित्रशाला का एक दरवाजा खुला। राजा उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गया। सुन्दर, भव्य, आकर्षक और मनोरम चित्रों को देखकर राजा मुग्ध हो गया। एकएक चित्र को विस्फारित आंखों से देखा । राजा ने चित्रकार को अनेक बार साधुवाद दिया। राजा का रोष
____आधा कक्ष पूरा देखने के बाद दूसरे कक्ष की बारी आई। राजा दूसरे कक्ष में पहुंचा । उसने देखा-भीतर कुछ भी नहीं है, दीवारें खाली पड़ी हैं। राजा की आंखें फटी रह गई। राजा ने पूछा-क्या तुम्हें पता नहीं है ? छह माह बीत गए हैं ?
वह बोला-पता है। एक भी चित्र नहीं बनाया ? हा ! नहीं बनाया। क्या किया ? क्या बताऊं ? मैंने बहुत कुछ किया है और कुछ भी नहीं किया । तुम जीना चाहते हो या मरना ? तुमने मेरे साथ धोख
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