________________
अस्तित्व और ओहसा
क्यों किया ?
महाराज ! मैंने धोखा नहीं किया है। चित्रकार ने रहस्य को छिपाए रखा । राजा तमतमा गया।
उसने कहा--महाराज ! आप चित्र देखना चाहते हैं तो इस बीच वाले पर्दे को हटाएं । जब तक पर्दा रहेगा, मेरे चित्र आपको दिखाई नहीं देंगे । पर्दा हटाया गया। राजा ने देखा-सारा कक्ष चित्रों से जगमगा उठा है। राजा को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। राजा विस्मय भरे स्वरों में बोला-चित्रकार ! क्या यह जादू है ?
हां ! यह एक जादू है ।
राजा ने पर्दा वापस डलवाया, सारे चित्र गायब हो गए। फिर पर्दा उठाया, सारा कक्ष चित्रों से भर गया।
राजा ने पूछा-यह क्या है ?
उसने कहा-महाराज ! मैंने एक भी चित्र नहीं बनाया। केवल छह महीनों तक दीवारों की घुटाई की है। ये दीवारें पारदर्शी बन गई हैं। जो भी सामने होगा, वह इन दीवारों में प्रतिबिम्बित हो जाएगा। घुटाई है अध्यात्म
हमारे सामने भी दो चित्रकार हैं। एक तूलिका चलाने वाला है और एक घुटाई करने वाला है। यह घुटाई हमारा अध्यात्म है। अध्यात्म भीतर का रहस्य है। जहां कोई चित्र नहीं है, केवल चैतन्य है। केवल मार्जन और शोधन है वहां । आधा कक्ष हमारा धर्म है। जिसमें नाना प्रकार के चित्र बने हुए हैं। कभी हमने सहिष्णुता का मानसिक चित्र बनाया। कभी क्षमा की साधना करके क्षमा का मानसिक चित्र बनाया। कभी विनम्रता का चित्र बनाया। क्योंकि धर्म के क्षेत्र में विकल्प का नाश करने के लिए अच्छा विकल्प लेना भी जरूरी है। यह विकल्पों का निर्माण करना हमारी धार्मिक चेतना का काम है । असत् योग, असत् प्रवृत्ति और असत् विकल्प को मिटाने के लिए सत् योग, सत् विकल्प, सत् प्रवृत्ति का चित्र बनाना, आचरण करना, हमारा धर्म है और उसको प्रतिबिम्बित करने के लिए घुटाई करना हमारा अध्यात्म है । घुटाई पूरी हो जाएगी तो धर्म उसमें अपने आप चित्रित हो जाएगा, आचरण अपने आप प्रतिबिम्बित हो जाएगा। नीति-शास्त्र का उद्देश्य
अध्यात्म और धर्म आचार एवं नैतिकता-दोनों से जुड़े हुए हैं। अध्यात्म है, धर्म है तो उसका आचरण भी होगा। समाज के संदर्भ में वह नैतिकता कहलाएगा। व्यक्ति के संदर्भ में हमारा आचरण आचार बन जाएगा। अकेला आदमी होता तो नैतिकता की कोई जरूरत नहीं होती।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org