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लघुता से प्रभुता मिले
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की दृष्टि से विचार करें तो अचेल रहना समाज को मान्य नहीं है किन्तु उससे होने वाली लघुता को नकारा नहीं जा सकता ।
महत्त्वपूर्ण सचाई
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महावीर ने स्वयं लाघव का प्रयोग किया । न वस्त्र का प्रयोग और न पात्र का उपयोग । जो कुछ मिलता, हाथ में ही खा लेते । न सर्दी की चिन्ता, न गर्मी की चिन्ता, न भूख की चिन्ता, न प्यास को चिन्ता, न वस्त्र की चिंता, न पात्र की चिन्ता । कोई चिन्ता नहीं, कोई भार नहीं । महावीर भीतर से भी हल्के थे, बाहर से भी हल्के थे । बहुत कठिन है इतना हल्का होना । महावीर ने जितने कष्टों को भेला उतना ही भीतर से आनंद का स्रोत बह चला । यह विचित्र दुनिया है । आदमी जितना सुविधा में जीता है उतना ही
बता चला जाता है, मानसिक तनाव से भरता जाता है और जितना कष्टों का जीवन जीता है, उतना ही भीतरी आनंद प्रस्फुटित होता जाता है । यह एक महत्त्वपूर्ण सचाई है ।
बढ़ रही है भीतरी दरिद्रता
हम आज की समस्या को देखें । जापान, अमेरिका जैसे संपन्न देश धन की दृष्टि से बढ़ते जा रहे हैं, पदार्थ और वैभव की दृष्टि से बढ़ते जा रहे हैं । वे कृत्रिम संसाधनों के निर्माण में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं । आज ही समाचार पत्र में पढ़ा- एक ऐसे मानव का निर्माण होगा, जिसका आधा शरीर जन्म का होगा और आधा यांत्रिक । केवल नाड़ी तंत्र और मस्तिष्क मूल रहेगा, शेष सारा शरीर कृत्रिम होगा । बाहर के लिए इतना कुछ किया जा रहा है किन्तु भीतरी दृष्टि से व्यक्ति दरिद्र बन रहा है । वह दुःखी बनता जा रहा है, अशान्ति और तनाव का जीवन जी रहा है । इसका कारण यही है - व्यक्ति बाहर में सुविधाओं का अंबार लगा रहा है और यही भीतरी पागलपन या अशान्ति को बढ़ा रहा है । यदि वह बाहरी कठिनाइयों को सहना सीख जाए, झेलना सीख जाए तो आनंद का सूत्र हस्तगत हो जाए ।
भीतर : बाहर
योग के संदर्भ में कहा गया- जब योग की साधना प्रारम्भ होती है तब अंतर में दुःख होता है, बाहर में सुख होता है । जब योग-साधना सिद्ध हो जाती है तब अंतर में सुख ही सुख होता है, बाहर कष्ट दिखाई देता है । कुछ ऐसा ही है - जैसे-जैसे पदार्थों का अम्बार लगता है, सुविधाएं बढ़ती चली जाती हैं वैसे-वैसे बाहर में सुख ही सुख दिखता है किन्तु भीतर में दुःखों की पंक्तियां जुड़ती चली जाती हैं । जैसे-जैसे यह मुटापा, यह गुरुता कम होती चली जाती है वैसे वैसे भीतर का सुख बढ़ता चला जाता है, बाहर में कठिनाई महसूस होती है । अगर महावीर को भीतर में कष्ट होता तो वे बारह वर्ष
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