________________
१६२
अस्तित्व और अहिंसा
साधना का कठोर जीवन कभी नहीं जी पाते । जब भीतरी आनंद का रहस्य उपलब्ध हो जाता है तब कष्ट की अनुभूति क्षीण हो जाती है । लोगों को लगता है -- कितना कष्ट है ! व्यक्ति सोचता है --कितना आनंद है
हलके बनो
हम इस रहस्य को समझें । यह पदार्थ और धन का मुटापा, सत्ता और शरीर का मुटापा जब तक रहेगा, अशान्ति और तनाव से मुक्ति नहीं मिल पाएगी । एक साधु भी इस समस्या से बच नहीं पाएगा । पदार्थ की प्रकृति ही ऐसी है कि वह संघर्ष का कारण बन जाता है । यदि पदार्थ के साथ ममत्व जुड़ जाता है तो वह अधिक खतरनाक बन जाता है । हम इस सचाई का अनुशीलन करें— पदार्थ ने किस व्यक्ति को मूर्च्छा में नहीं धकेला है । वही व्यक्ति मूर्च्छा से बच सकता है, जो लघु बनता चला जाता है । इसीलिए महावीर ने कहा - हलके बनो, मोटे मत बनो। यह जीवन के कल्याण का महत्त्वपूर्ण सूत्र है । जिस व्यक्ति ने हल्केपन का अनुभव किया है, लघुता की दिशा में प्रस्थान किया है, सचमुच वह दुःखों से तरा है, उसने कष्टों से मुक्ति का वरण किया है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org