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शरीर लाघव
टापा दो कारणों से होता है। बाहरी वस्तुएं व्यक्ति को मोटा बनाती हैं, भीतरी तत्त्व भी उसे मोटा बनाते हैं । हमारे भीतर की चेतना है ममत्व चेतना | जितना ममत्व का भार होता है, व्यक्ति उतना ही नीचे दबता चला जाता है । महावीर ने हलके बनने के कुछ प्रयोग निर्दिष्ट किए हैं। पहला प्रयोग है— शरीर की लघुता का । महावीर ने कहा- जो प्रज्ञावान बन चुका है, उसकी भुजाएं कृश होंगी, उसका मांस - शोणित प्रतनु होगा । शरीर का कृश होना प्रज्ञावान पुरुष का एक चिह्न है । एक साधक व्यक्ति, जो ममत्व को कम कर रहा है, मोह को कम कर रहा है, उसमें मांस और शोणित का अतिशय उपचय नहीं होना चाहिए। यह माना गया -- मांस और शोणित का अतिरिक्त उपचय मोह-मूर्च्छा को बढ़ाने वाला होता है । यह एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है -- ज्यादा मांस और ज्यादा रक्त का होना ध्यान और स्वास्थ्य – दोनों के लिए अहितकर है । प्रज्ञावान पुरुष में शरीर लाघव होता है । भुजाओं का सुदृढ़ बनना एक मल्ल के लिए आवश्यक हो सकता है पर वह एक साधक के लिए अच्छा नहीं है । जो सुख और शान्ति का जीवन चाहता है, उसके लिए शरीर लाघव का सूत्र महत्त्वपूर्ण है ।
अस्तित्व और अहिंसा
'उपकरण लाघव
दूसरातत्त्व है - उपकरण लाघव । पदार्थं लाघव की बात वर्तमान संदर्भ में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । आज सामाजिक विग्रह और सामाजिक संघर्ष का कारण बन रहा है पदार्थ का मुटापा । पदार्थ के संग्रह से आदमी अपना मुटापा बहुत बढ़ा लेता है । पदार्थ का काम है मोह पैदा करना । तथ्य तो यह है — एक अणुमात्र पुद्गल भी हमारे भीतर मोह पैदा करता है । कभी कभी पदार्थ इतना भयंकर अनर्थ पैदा करता है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । ममत्व की चेतना और पदार्थ की चेतना -- इन दोनों का भार शरीर और मन को मोटा बना रहा है, व्यक्ति के लिए यह मुटापा खतरनाक बनता चला जा रहा है ।
लघुता : प्रभुता
महावीर ने लघुता के अनुभव पर बल दिया । जिस दिन लघुता का अनुभव होता है, उस दिन व्यक्ति के भीतर से अपने आप प्रभुता फूटती है । बाहरी प्रभुता प्रतिक्रिया पैदा करती है किन्तु भीतरी प्रभुता प्रतिक्रिया नहीं, प्रसन्नता को जन्म देती है । वह अपने लिए भी आनन्ददायी होती है और दूसरों के लिए भी आनन्ददायी होती है । एक मुनि के लिए विधान किया गया- वह तीन पछेवड़ी से ज्यादा उपकरण न रखे । महावीर ने कहा- तुम लघुता का प्रयोग करो, तुम्हारा तप-तेज बढ़ता चला जाएगा। हम समाज
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