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प्रवचन ३४
| संकलिका
• एगयरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले। ० लाघवं आगममाणे • तवे से अभिसमण्णागए भवति
(आयारो ६/६२-६४) .. आगयपण्णाणाणं किसा बाहा भवंति पयणुए मांससोणिए।
(आयारो ६/६७) ० लघुता का उपदेश ० बाहरी प्रभुता : प्रतिक्रिया ० आंतरिक प्रभुता : प्रसन्नता ० साक्षी है इतिहास ० मुटापा
भीतरी तत्त्व है--ममत्व-चेतना
बाहरी तत्त्व है--- पदार्थ-चेतना .0 लाघव : दो प्रयोग
शरीर लाघव
उपकरण लाघव ० प्रज्ञावान् मुनि का चिह्न ० महावीर : लाघव की साधना ० वर्तमान समस्या ० जितनी सविधा: उतना तनाव
जितना कष्ट : उतना आनन्द • संदर्भ योग का--- बाहर सुख--भीतर दुःख
भीतर सुख-बाहर दुःख • सचाई का अनुशीलन करें ।
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