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प्रवचन ३२
| संकलिका
० पासह एगेवसीयमाणे अणत्तपण्णे। (आयारो ६/५) • से बेमि -से जहा वि कुम्मे हरए विणिविट्ठचित्ते पच्छन्नपलासे उम्मग्र से णो लहइ।
(आयारो ६/६) ० ऊपर की ओर चलो, लक्ष्य बड़ा बनाओ • अवसाद क्यों होता है ? .० लक्ष्य है आत्मा की उपलब्धि ० बहुत हैं पड़ाव ० सुन्दर संयोग ० कछुए की निराशा ० कठिन है मूर्छा को भेद पाना ० पुरुषार्थ सापेक्ष है क्षयोपशम ० दो तंत्र : चेतना और कर्म
चेतना सक्रिय : कर्म निष्क्रिय कर्म सक्रिय : चेतना निष्क्रिय ० व्यक्ति स्वयं है अपना भाग्य विधाता ० पुरुषार्थ का दर्शन : कर्मवाद ० प्रज्ञा आत्मा के साथ जुड़े, शरीर से नहीं ० साधना का पहला पडाव ० महत्त्वपूर्ण कसौटी
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