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असार संसार में सार क्या है ?
त्याग के सिवाय सार है क्या ? मोह के कारण आदमी असार में सार का आरोपण कर रहा है, असार को सार मान रहा है। असंयम एक बार सार लगता है, व्यक्ति उसमें सार का आरोपण करता है, किन्तु वह सार का आभास है, सार नहीं है। जब व्यक्ति अपनी मूल प्रकृति में लौटता है, उसमें यह मति जागती है---मैंने जिसको सार मान रखा था, वस्तुतः वह सारभूत नहीं निकला । यथार्थ में 'सत्य एवं संयम ही सार है। यह अनुभूति उसकी दिशा को बदलने में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बनती है। महावीर की इस अमूल्य वाणी को जिस दिन हम आत्मसात् कर पाएंगे, यह सूक्त हमारे जीवन का सत्य बन जाएगा।
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