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असार संसार में सार क्या है ?
विद्याओं का, शब्द शास्त्रों का कोई पार ही नहीं है। एक आदमी एक जीवन में कितना क्या करे ? किस-किस को पढ़े ? क्या-क्या जाने ? निष्कर्ष की भाषा में उत्तर दिया गया—सबके पीछे मत दोड़ो, जो सार है, उसे पकड़ लो । जो असार है, उसे छोड़ दो। छिलकों को मत पकड़ो, उसके भीतर जो रस है, उसे पकड़ो। दुनिया में सार क्या है ? असार क्या है ? इसका निर्णय करना बहुत कठिन है।।
___ आचारांग के पांचवें अध्ययन का नाम है--लोकसार । प्रश्न प्रस्तुत हो गया-लोक में सार क्या है ? उत्तर दिया गया-लोक में सार है सत्य । पुनः प्रश्न उभरता है-भूख लगती है तो सत्य क्या करेगा ? प्यास लगती है तो सत्य क्या करेगा? यह प्रश्न बहुत जटिल रहा है। ऐसा लगता है, जब से मनुष्य सोचने लगा है तब से सार और असार का प्रश्न भी उसके सामने रहा है। क्या है सार
राजा भोज की सभा में भी यही प्रश्न प्रस्तुत हुआ—इस असार संसार में सार क्या है ?
एक पंडित ने समाधान दिया--इस संसार में तीन बातें सारभूत हैं--काशी में वास करना, अच्छे विद्वानों की सेवा करना और प्रभु का भजन करना
काश्यां वासः सतां सेवा मुरारेः स्मरणं तथा ।
असारे खलु संसारे, सारमित्यभिधीयते ।। राजा ने कहा-बात पूरी नहीं हुई। दूसरा पंडित बोला-इस असार संसार में ससुराल में रहना ही सार
हरः शेते हिमगिरौ, हरिः शेते पयोनिधौ ।
__ असारे खलु संसारे, सारं श्वसुरमंदिरम् ।। यह भी पूर्ण बात नहीं है।
कालिदास बोला-इस असार संसार में स्त्री ही सार है, जिसकी कुक्षि से राजा भोज जैसा विद्वान् व्यक्ति उत्पन्न हुआ है
असारे खलु संसारे, सारं सारंगलोचना । यस्याः कुक्षौ समुत्पन्नो, भोजराजो भवादृशः ।।
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