________________
जहां स्वर मौन हो जाते हैं
यह जगत् बहुत बड़ा भी है और बहुत छोटा भी है । यह इतना सूक्ष्म है कि हम इस तक पहुंच ही नहीं पाते। बड़े को जाना जा सकता है पर छोटे को जानना मुश्किल होता है। स्थूल पकड़ में आ जाता है, सूक्ष्म को पकड़ना बहुत कठिन होता है । तलवार लकड़ी को काट देती है पर वह परमाणु को नहीं काट सकती । इसलिए कहा गया-स्थल पर बहुत भरोसा मत करो। स्थूल से डरने जैसी बात भी महत्वपूर्ण नहीं है । व्यक्ति सूक्ष्म से डरता है। सूक्ष्म तेजस्वी होता है, स्थूल तेजस्वी नहीं होता । सूक्ष्म को पकड़ पाना सहज संभव नहीं है। प्रश्न शुद्ध आत्मा का
'सव्वे सारा नियटॅति'-जहां से सारे स्वर लौट आते हैं, यह सूक्त सूक्ष्म सत्य को अभिव्यक्ति देने वाला है । उस सूक्ष्म तत्त्व तक न बुद्धि पहुंच पाती है, न तर्क पहुंच पाता है, न शब्द पहुंच पाते हैं। हमारे पास जानने के जो साधन हैं, उनकी सूक्ष्म तक पहुंच ही नहीं है।
महावीर ने जीवों के दो प्रकार बतलाए- संसारी जीव और असंसारी जीव । बद्धजीव या मुक्तजीव । संसारी जीव स्थूल है, वह दिखाई देता है। उसके वस्त्र भी पहने हुए हैं । शुद्धात्मा या मुक्त जीव के पास कुछ भी नहीं है । उसके न शरीर है, न रूप है, न आवरण और न कोई माध्यम है, इसीलिए उसे जानना बहुत कठिन है। आचारांग में मुक्त आत्मा का जो विवेचन किया गया है, उसे हम शुद्ध आत्मा या परमात्मा कह सकते हैं। वह आत्मा का बहुत मार्मिक विवेचन है । आत्मा का इतने महत्त्वपूर्ण ढंग से वर्णन अन्यत्र दुर्लभ है। शब्दातीत
प्रश्न हुआ, हम आत्मा को कैसे जानें ? जानने का हमारे पास एक साधन है शब्द, पर वह बहुत छोटा माध्यम है । शब्द पदार्थ तक भी नहीं पहुंच पाता। हम उसका पदार्थ के साथ जबरदस्ती संबंध जोड़ देते हैं। अंततः वह एक संकेत ही है। एक शब्द गढ़ा गया--आत्मा। यह शब्द आज बहुत प्रचलित है। पांच-दस हजार वर्ष पहले हमारे पूर्वजों ने क्या कहा था ? उनके पास क्या शब्द थे? क्या भाषा थी? हम इसे नहीं जानते । भगवान् ऋषभ के समय में आत्मा को क्या कहा जाता था, इसका हमें पता नही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org