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प्रवचन ३०
| संकलिका
० सम्वे सरा नियटुंति । तक्का तत्थ न विज्जई । मई तत्थ ण गाहिया । ० ओए अप्पतिट्ठाणस्स खेयणे । .. से ण दोहे, ण हस्से, ण वट्टे, ण तंसे, ण चउरंसे, ण परिमंडले। .० ण किण्हे, ण नीले, ण लोहिए, ण हालिद्दे, ण सुविकल्ले। .. ण सुगंधे, ण दुरभिगंधे। .. ण तित्ते, ण कडुए, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे। .. ण कक्खड़े, ण मउए, ण गरए, ण लहुए, ण सीए, ण उण्हे, ण णिद्ध, ण
लुक्खे। .. ण काऊ । ण रहे । ण संगे। ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णहा ।
० परिणे सणे । उवमा ण दिउजई । अरूवी सत्ता । अपयस्स पयं पत्थि । .० से ण सद्दे, ण रूवे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे, इच्चेताव।
(आयारो ५/१२३-१४०) ० बद्धजीव : मुक्तजीव ० मूर्त : अमूर्त ० अमूर्त सत्ता और सर्वज्ञता
अमूर्त तत्त्व मान्य है तो सर्वज्ञता का सिद्धान्त मान्य है। सर्वज्ञता का सिद्धांत मान्य है तो अमूर्त तत्त्व मान्य है। ० शुद्ध आत्मा का स्वरूप ० नया प्रत्यय___ कुछ पदार्थ रूपवान् हैं, कुछ रूपवान् नहीं हैं । ० क्षायोपशमिक ज्ञान : क्षायिक ज्ञान ० आचारांग का नेतिवाद ० आत्मा के ध्यान का सूत्र
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