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वह तू ही है
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सकता है । जिस दिन व्यक्ति के भीतर यह चेतना जागेगी उस दिन करुणा का अथाह प्रवाह प्रवाहित होगा, सारे भेद समाप्त हो जाएंगे। हम सब आत्माओं को समान ही नहीं, एकात्मरूप में देखने लग जाएंगे । इस स्थिति में हिंसा अपने आप समाप्त हो जाएगी। अपेक्षा है—हम संग्रह नय की दृष्टि से प्रतिपादित आचारांग के इस सूक्त का मनन करें, इस सूक्त की अनुभूति करें। जिस दिन यह अनुभूति जागती है, कोई व्यक्ति किसी को सता नहीं सकता, किसी के साथ अन्याय नहीं कर सकता, कटु व्यवहार नहीं कर सकता । अहिंसा की चेतना को जगाने वाला यह सूत्र सामाजिक समस्याओं, पारस्परिक व्यवहारों में परिवर्तन लाने का एक अमोघ सूत्र बन सकता है ।
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