SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन २६ | संकलिका .० तुमंसि नाम सच्चेव जं हंतव्वं ति मन्नसि । तुमंसि नाम सच्चेव जं अज्जावेयव्वं ति मन्नसि । तुमंसि नाम सच्चेव जं परितावेयव्वं ति मन्नसि । तुमंसि नाम सच्चेव जं परिघेतव्वं ति मन्नसि । तुमंसि नाम सच्चेव जं उद्दवेयव्वं ति मन्नसि। (आयारो ५/१०१) ० एगे आया (ठाणं १/२) .० जे आया से विण्णाया, जे विष्णाया से आया । ० जेण विजाणति से आया। (आयारो १/१०४) .० जैन भी अद्वैतवादी, वेदान्त भी अद्वैतवादी .0 एकात्मवाद : समतावाद .० पुद्गल और आत्मा में भेद ० भेद कम हैं, अभेद अधिक .0 संग्रह नय : व्यवहार नय • संकल्प-शक्ति : अभेद का प्रयोग ० अनंतर संबंध : परंपर संबंध • अभेद बुद्धि : अहिंसा ० एक पुस्तक से जुड़ा है पूरा ब्रह्माण्ड ० भेदरेखा का परिणाम ० क्रूरता का कारण है भेद • अहिंसा की जागृति का सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy