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ब्रह्मचर्य के प्रयोग
पथार्थ का धरातल
हमें यथार्थ के आधार पर चलना चाहिए, केवल उपदेश या भावना के आधार पर नहीं। यह एक यथार्थ है—जितनी जागरूकता रहेगी उतनी ही पवित्रता और निर्मलता बढ़ेगी। जितनी जागरूकता में कमी आएगी उतनी ही निर्मलता और पवित्रता प्रभावित होगी। महावीर ने अकाम-सिद्धि जो प्रयोगा बतलाए हैं, वे काम में लिये जाएं तो जागरूकता की समस्या नहीं होगी । आदमी चलता है, हवा का एक झोंका आता है, बाधा खड़ी हो जाती है । यदि उसका संकल्प मजबूत होता है तो बाधा टिक नहीं पाती। जिसका संकल्प मजबूत है, जिसमें प्रयोग करने की प्रबल भावना है, वह 'काम' के द्वारा उपस्थित होने वाली बाधाओं को धीरे-धीरे पार करता चला जाएगा और एक दिन अकाम की स्थिति को पा लेगा। यदि प्रयोग नहीं चलेंगे, आत्मालोचन और आत्म-निरीक्षण का क्रम नहीं चलेगा तो मन पर मैल जमता चला जाएगा और वह इतना गाढ़ा, बन जाएगा कि उसमें बदबू आने लगेगी। कहा गयातीर्थंकरों की सांस कमल की सुगंध जैसी होती है । केवल तीर्थंकरों की ही नहीं, उन सब व्यक्तियों की सांस अच्छी होती है, जिनके विचार अच्छे और पवित्र होते हैं। गंध के आधार पर भी आदमी के चरित्र को जाना जा सकता है। ब्रह्मचर्य की सिद्धि के जो प्रयोग हैं, उन्हें काम में लें, हमारे विचार पवित्र बनते चले जाएंगे, कामनाओं, वासनाओं और निषेधात्मक भावों पर नियंत्रण सधता चला जाएगा, हम अपने इष्ट की सिद्धि को प्राप्त हो जाएंगे।
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