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________________ अस्तित्व और अहिंसा संकल्प को दूसरी दिशा में प्रवाहित करो। आसन यह भी एक उपाय है। इसका अर्थ है--जो ऊर्जा बनती है, उसको संतुलित कर देना। आसन के साथ कुछ विशेष बातें जुड़ी हुई होती हैं। आसन से अंतःस्रावी गन्थियों एवं नाड़ीतंत्र का, शरीर के सारे अवयवों का संतुलन बन जाता है। सर्वांगासन केवल पैरों को ऊंचा करने वाला आसन ही नहीं है, केवल स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाला आसन ही नहीं है, यह अंतःस्रावी ग्रन्थियों को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण आसन है। कुछ आसन ऐसे हैं, जो शारीरिक स्वास्थ्य-लाभ की दृष्टि से उपयोगी होते हैं। कुछ आसन ऐसे हैं, जो सीधे नाड़ी तंत्र और ग्रन्थितंत्र को प्रभावित करते हैं। थायराइड ग्रन्थि हमारे शरीर-रचना की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है । वह भावना से भी जुड़ी हुई है। कहा जा सकता है जिसकी थायराइड ग्रन्थि गड़बड़ा गई, एक प्रकार से उसका सारा जीवन ही गड़बड़ा गया। सर्वांगासन से थायराइड ग़न्थि प्रभावित होती है। एक आसन है---शशांकआसन। यह केवल पेट को ही प्रभावित नहीं करता, एड्रीनल गलेन्ड को भी प्रभावित करता है। ब्रह्मचर्य की साधना में इन आसनों का महत्व स्वतः स्पष्ट है। सुकुमारता छोड़ें सुकुमारता को छोड़ना, यह भी एक उपाय है । सूकुमारता के त्याग के लिए श्रम जरूरी है । श्रम चाहे विहार का हो, गोचरी या आसन का हो । ___महावीर ने कहा--सौकुमार्य को छोड़ो। जहां ज्यादा सुकुमारता आएगी वहां काम को निमंत्रण होगा। कोमल शय्या, कोमल गद्दे और बिछौने---ये सुकुमारता के जितने चिह्न हैं, वे काम को सीधा निमंत्रण देने वाले हैं। जो व्यक्ति इस सौकुमार्य में डूबा रहेगा, उसका न ज्ञान में मन लगेगा, न ध्यान और स्वाध्याय में मन लगेगा। उसका मन उचटा-उचटा रहेगा । वह कोई काम नहीं कर पाएगा। सुकुमारता से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है हमारा मस्तिष्क । मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियां हैं। उनमें से एक भी प्रकृति की तरंग उठती है तो हमारा मस्तिष्क प्रभावित हो जाता है, उसमें विकृति आ जाती है। जो व्यक्ति अपने मन को निर्मल रखना चाहता है, मस्तिष्क को पवित्र रखना चाहता है, उसे बहुत सावधान रहना पड़ेगा, जागरूक रहना होगा, बार-बार आत्म-निरीक्षण और आत्म-चिन्तन करना होगा। इतना तीन प्रयत्न करने पर ही काम से अकाम की दिशा में प्रत्थान संभव बन सकता है। हम इस दिशा में प्रयत्न न करें तो अकाम-सिद्धि या ब्रह्मचर्य-सिद्धि का स्वप्न कभी सफल नहीं बन पाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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