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ब्रह्मचर्य के प्रयोग में चित्त और मन की पवित्रता प्रभावित हुए बिना नहीं रहती।
___ ब्रह्मचर्य-सिद्धि के ये दो उपाय-निर्बल आहार और अल्प आहारभोजन से संबद्ध हैं । हम आहार का विवेक करें। आहार का विवेक सम्यक होगा तो साधना सम्यक् रूप से संपादित होती चली जाएगी। कायोत्सर्ग
ब्रह्मचर्य की सिद्धि का एक उपाय है-खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करना। ब्रह्मचर्य की साधना का यह महत्त्वपूर्ण उपाय है-पुरुष दोनों हाथों को ऊंचा कर ध्यान करे । स्त्री के लिए यह निषिद्ध है। बीदासर के एक श्रावक हुए हैं नेमीचंदजी सेखानी। वे दोनों हाथों को ऊंचा कर खड़े-खड़े सामायिक किया करते थे। खड़े-खड़े ध्यान करना साधना की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसमें ऊर्जा का एक वलय बनता है। ऊर्जा एक स्थान पर ज्यादा संचित नहीं होती । हमारे शरीर की यह प्रकृति है कि ऊर्जा नीचे की ओर ज्यादा जाती है। इस ऊर्जा को ऊपर की ओर ले जाना बहुत जरूरी है। ऊर्जा को ऊपर ले जाने के लिए सीधा होना जरूरी है। चाहे लेटकर सीधे हों या खड़े-खड़े । यह एक उपाय है ऊर्जा के ऊर्वीकरण का, ब्रह्मचर्य की सिद्धि का । ममत्व का विच्छेद
___ ब्रह्मचर्य की सिद्धि का एक उपाय है---ममत्व का विच्छेद । मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह समाज के साथ जीता है इसलिए समाज के साथ लगाव का हो बहुत प्रासंगिक है। महावीर ने ब्रह्मचारी मुनि के लिए विधान किया—एक गांव में ज्यादा मत रहो। यदि मुनि एक गांव में अधिक समय तक रहे तो संभव है, लगाव हो जाए, ममत्व हो जाए। उग्र विहार की बात साधना की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है । नव-कल्प विहार का विधान साधुत्व का अनिवार्य नियम नहीं है। यह साधना की दृष्टि से संभावना के वर्जन का नियम है। बहुत सारे विधान निमित्तों से बचने के लिए किए जाते हैं। एक सूत्र दिया गया-ग्राम-अनुग्राम विहार करो, परिचय कम होगा, लगाव कम होगा, ममत्व की गांठ को घुलने का मौका कम मिलेगा। तपस्या : दिशा-परिवर्तन
___ ब्रह्मचर्य की साधना का यह महत्त्वपूर्ण सूत्र है-अममत्व य अप्रतिबद्धता । इतनी साधना के बाद भी यह लगे-ममत्व की ग़न्थि खल नहीं रही है तो आहार को एकदम छोड़ दो, तपस्या प्रारंभ करो। तपस्या रे ममत्व की ग्रन्थि पर एक आघात लगता है, वह टूटने लग जाती है।
_ब्रह्मचर्य की सिद्धि का एक भावात्मक उपाय बतलाया गया-मन के साधना करो, मन का जिस ओर लगाव है, उस ओर से मन को मोड़ दो
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