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________________ ब्रह्मचर्य के प्रयोग आचारांग सूत्र ध्यान का गंभीर ग्रंथ है। उसमें साधना के रहस्यों का रहस्यपूर्ण भाषा में प्रतिपादन किया गया है। आचार केवल ऊपर का क्रियाकांड नहीं होता, वह आत्मा की अनुभूति से उपजा हुआ एक व्यवहार होता है, जिसकी पृष्ठभूमि में रहती है आत्मा की अनुभूति और बाहर से निकलता है आचरण एवं व्यवहार । आचारांग में अन्तर की अनुभूति एवं बाह्य व्यवहार का रहस्यपूर्ण प्रतिपादन है। उसमें सबसे पहले अहिंसा का प्रतिपादन हुआ है। उसके बाद अपरिग्रह और अकाम-ब्रह्मचर्य का विवेचन उपलब्ध होता है। अर्थ अकाम का ___ काम व्यक्ति को एक दिशा में ले जाता है और अकाम दूसरी दिशा में । हम ब्रह्मचर्य को एक सीमा में न बांधे। पांच इन्द्रिय और मन की चंचलता-इन सबका विषय कामना के साथ जुड़ा हुआ है । काम नाक, आंख, कान--सबको प्रेरित करता है । नाक की गंध का कामना के साथ बहुत गहरा संबंध है। हमारा एक आदिम मस्तिष्क माना जाता है, जिसे एनीमल ब्रेन (Animel brain) कहते हैं, वह यंध से बहुत प्रभावित होता है इसीलिए एक साधक के लिए सुगंधित द्रव्यों से बचना बहुत जरूरी बतलाया गया है। पांच इन्द्रियां और मन—ये सब कामना के साथ जुड़े हुए हैं। अकाम का अर्थ है-पांच इन्द्रियों का निग्रह, मन का निग्रह । कामना आत्मा के साथ जुड़ा हुआ शरीर का इतना बड़ा तत्त्व है कि उस पर नियंत्रण या निग्रह करना सामान्य बात नहीं है। कामना की तरंग न उठे, ऐसी स्थिति बन जाए तो यह बहुत सौभाग्य की बात है किन्तु ऐसा होना अत्यन्त कठिन है। अकाम-सिद्धि : प्रयोग भगवान् महावीर ने अकाम-सिद्धि का उपदेश ही नहीं दिया, उसके उपाय भी बतलाए । आचारांग सूत्र के पांचवें अध्ययन के एक आलापक में अकाम-सिद्धि के प्रयोग निर्दिष्ट हैं। अकाम-सिद्धि या ब्रह्मचर्य की सिद्धि केवल धारणा से सम्भव नहीं है। उसके लिए प्रयोग के एक क्रम से गुजरना होगा। ब्रह्मचर्य-सिद्धि या अकाम-सिद्धि का एक उपाय है—निर्बल आहार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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