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संघर्ष का कारण
प्रश्न है—किससे लड़ें? हम कलह से लड़ें, काम से लड़ें। अगर कलह से लड़ना है तो जीवन प्रणाली को समानता के आधार पर चलाना होगा । अभी कुछ दिन पूर्व मदुरै में संघर्ष का वातावरण बन गया। कारण था कुछ हरिजन ईसाई बन गए। इस बात को लेकर हिन्दुओं और ईसाइयों के बीच झगड़ा हो गया। क्या ईसाई बनने वाले धर्म या तत्वज्ञान के आधार पर ईसाई बने । वे ईसाई बने हैं असामानता के कारण, घृणा के कारण। एक उच्च वर्ग कहलाता है, वह दूसरे को निम्न-वर्गीय मानता है । वह उसके साथ अस्पृश्यता का व्यवहार करता है, घृणा का व्यवहार करता है। उस घृणा की प्रतिक्रिया धर्म-परिवर्तन के रूप में होती है और संघर्ष का वातावरण बन जाता है । जब से हिन्दू और मुसलमान का इतिहास चला है तब से न जाने कितने व्यक्ति घृणा से तिरस्कृत होकर धर्म-परिवर्तन के लिए बाध्य हुए हैं
और वे ही सबसे ज्यादा शत्र बने हैं। समानता की आस्था जागे
महावीर ने कहा-यह घणा की जो प्रणाली चल रही है, इससे लड़ो। जब तक बिषमता से लड़ने वाली जीवन प्रणाली नहीं होगी तब तक मानवीय एकता पर आधारित, समानता पर आधारित जीवन प्रणाली विकसित नहीं हो पाएगी। विषमता से उत्पन्न होती है घृणा। इन समस्याओं का अन्त पुलिस या सेना के फ्लैग मार्च से भी संभव नहीं है। इसका एक ही समाधान है और वह है--समानता की वृत्ति का विकास । हमारी इस समानता में आस्था जागे-'सब मनुष्य समान हैं", "मनुष्य जाति एक है"। यह आस्था जितनी प्रबल बनेगी, हम विषमता से लड़ पाएंगे, विषमता से पैदा होने वाली लड़ाई और संघर्ष की स्थिति से लड़ने में सफल होंगे। शान्ति और समन्वय का अस्त्र
लड़ने का एक अस्त्र है---शान्तवृत्ति का विकास । हम कोई भी निर्णय लें, कार्य करें, वह उत्तेजनापूर्ण स्थिति में न करें। जीने का ऐसा अभ्यास डालें कि हम संघर्ष की किसी भी स्थिति के विरुद्ध अपनी शान्तवृत्ति न खोएं। संघर्ष को शान्ति के साथ झेलें, शांति के साथ समस्या का समाधान करें, समझौता या संधि करें। हम पहले उत्तेजना फैलाएं, लड़ें, फिर शान्ति एवं समझौते की बात करें, इससे अच्छा है—हम पहले ही शांति के अस्त्र से लड़ें। लड़ने का जो सबसे सुन्दर हथियार है, वह शान्ति का हथियार है। इसे अणुबम भी परास्त नहीं कर सकता। महावीर ने कहा-जीवन में विजयी होने का कोई अस्त्र है तो वह शस्त्र नहीं, शान्ति है। कलह नहीं
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