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________________ आओ लड़ें तरीका है शान्तिपूर्ण व्यवहार। समानता और शान्तवृत्ति-ये दो महत्त्वपूर्ण अस्त्र हैं। इनका प्रयोग करने वाला बड़े से बड़े शत्रु को समाप्त कर देता है। हमारे शरीर के भीतर भी एक उत्तेजना का शरीर बैठा है। वस्तुतः यह उत्तेजना की समस्या हमारे भीतर ही है, बाहर नहीं है। उत्तेजना का शरीर, जिसे सूक्ष्म-शरीर या कर्म-शरीर भी कह सकते हैं, वह आवेशों का शरीर है । जितने आवेग-आवेश पैदा होते हैं, वे बाहर से नहीं, सूक्ष्म शरीर से पैदा होते हैं। समस्या यह है-हम उसे देख नहीं पा रहे हैं, समझ नहीं पा रहे हैं। महावीर ने उस सूक्ष्म शरीर, कर्म-शरीर को देखा। उन्होंने कहाजो समस्या और संकट पैदा कर रहा है, वह तुम्हारे शरीर में बैठा हुआ शरीर ही पैदा कर रहा है। तुम केवल बाहरी दुनिया में आरोपण कर रहे हो---अमुक व्यक्ति मेरा शत्रु है, अमुक व्यक्ति मेरा विरोधी है, किन्तु जो शत्रुता का भाव पैदा कर रहा है, उस कर्म-शरीर की ओर तुम्हारा ध्यान नहीं जा रहा है । जब तक जीवनशैली नहीं बदलेगी, बंधी बंधाई धारणाओ में बदलाव नहीं आएगा तब तक व्यक्ति अपने भीतर नहीं झांक पाएगा। बंधी बंधाई धारणा से आदमी प्रबंचना में चला जाता है। इस मनोवृत्ति को बदलना जरूरी है। धारणा बदलें ___ एक धारणा बन गई—जो जैसा व्यवहार करता है, उसके साथ वैसा व्यवहार करें। 'शठे-शाठ्यं समाचरेत्'जब तक यह धारणा नहीं बदलेगी, शान्त वृत्ति का जीवन नहीं होगा। आदमी में छलना है, वह प्रवंचना करना चाहता है इसीलिए उसकी आंख खुली होते हुए भी मुंदी हुई रहती है। ____ व्यक्ति अपनी इस मनोवृत्ति के कारण बाहर ही बाहर देखता है। उसकी जीवनशैली बाहरी परिवेश से प्रभावित है। भीतर की ओर देखे बिना उसे बदला नहीं जा सकता। हम इस तथ्य को इस भाषा में समझे। धर्म और अध्यात्म को समझे बिना जीवन की वर्तमान प्रणाली को बदला नहीं जा सकता। चाहे कितनी ही राजनैतिक प्रणालियां विकसित हो जाए, साम्यवाद, समाजवाद या लोकतंत्र की प्रणाली आ आए, जीवनशैली में परिवर्तन नहीं आएगा । जीवन को बदल सकता है केवल धर्म और अध्यात्म । यह मान लेना चाहिए कि समाज की वर्तमान जीवन-प्रणाली धर्म पर आधारित नहीं है। महावीर ने कहा--जो जीवनशैली बाह्य परिवेश पर आधारित है, उससे लड़ो, उसे बदलो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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