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जीवन-शैली बदले
पराक्रम, शक्ति और लड़ाई-तीनों का योग है । लड़ाई के तरीके अलग-अलग हैं । लिंकन जब राष्ट्रपति बने, उनके सलाहकारों ने सलाह दी - आप अपने शत्रुओं को कारावास में डाल दें । लिंकन ने जवाब दिया- नहीं, मैं ऐसा नहीं करूंगा । मैं अपने सद्व्यवहारों से उनका दिल जोतने का प्रयत्न करूंगा। दो तीन वर्ष बाद तुम देखोगे मेरे शत्रु मेरे अच्छे मित्र बन जाएंगे, शुभ चिन्तक बन जाएंगे ।
लड़ने की एक शैली वह
डंडे बरसाए जाते हैं ।
लड़ने का तरीका हिंसक भी होता है, अहिंसक भी होता है । निषेधात्मक भावों से भी लड़ा जाता है, विधायक भावों से भी लड़ सकते हैं । जो व्यक्ति, महावीर की भाषा में लड़ना चाहे, 'आओ लड़ें', का निमंत्रण देना चाहे, उसे अपनी जीवन शैली को बदलना होगा । है, जिसमें गाली-गलौच किया जाता है, पत्थर और लड़ने की एक शैली वह है, जिसका प्रयोग समरांगण में होता है, युद्ध के मैदान में होता है । आजकल चुनावी दंगल में वाक्युद्ध चलता है । यह भी लड़ने की एक शैली है। लड़ाई की एक शैली महावीर की भाषा में उपलब्ध होती है । वह लड़ने का सबसे शक्तिशाली तरीका है, उसके सामने कोई टिक नहीं पाता । वह तरीका है जीवन की प्रणाली को बदलने का ।
उत्तेजना और शैली की भाषा
महावीर ने कहा ---तुमसे कोई लड़ने आए तो तुम कायोत्सर्ग की मुद्रा में खड़े हो जाओ । तुम्हारे भीतर इतना पराक्रम जागेगा, लड़ने वाला सामने टिक नहीं पाएगा । आज जो जीवनशैली चल रही है, उसमें महत्त्वपूर्ण तत्त्व है उत्तेजना | कोई भी परिस्थिति आती है, उत्तेजनापूर्ण वातावरण निर्मित हो जाता है । उत्तेजना का एक संस्कार बन गया है । प्रत्याक्रमण और उत्तेजना 'सारा माहौल उत्तेजनामय बन जाता है। ऐसा वातावरण शायद पहले नहीं रहा होगा । आज यह सिखाया जाता है—तुम्हें अपनी बात मनवाना है, अपना काम करवाना है तो उत्तेजनापूर्ण वातावरण बनाओ, आक्रामक रुख अख्तियार करो, तुम्हारा काम बन जाएगा । आज स्थिति यह है, जनता उत्तेजना की भाषा को समझने लगी है और सरकार गोली की भाषा को समझती है । उत्तेजना और गोली की भाषा, यह लड़ने का वह तरीका है। जिसका कहीं भी अंत नहीं होता । महावीर की भाषा है— उत्तेजना के विरोध में शांति का प्रयोग करें, अहिंसा का प्रयोग करें । उत्तेजना में कोई काम अच्छा नहीं होता ।
समस्या भीतर है, बाहर नहीं
महावीर की भाषा में लड़ने का पहला तरीका है- समानता, दूसर
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