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आओ लड़ें
'आओ लड़ें'—यह निमंत्रण की भाषा है। न कुछ लाना और न कोई बात, केवल लड़ाई का आह्वान । निमंत्रण देना चाहिए—-आओ ! शान्ति करें, समझौता करें, पर निमंत्रण दिया गया—आओ लड़ें । ऐसा निमंत्रण क्यों दिया गया ? यह प्रश्न सहज उभर जाता है। कहा जाता है-जो आदत पड़ जाती है, वह छूटती नहीं। यह बात पूर्णतः असत्य नहीं है। भगवान् महावीर क्षत्रिय थे, योद्धा थे। वे मुनि बन गए पर उनकी लड़ने की आदत नहीं छूटी। महावीर ने महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया---जीवन में भाग्य से कभी-कभी युद्ध का अवसर आता है। प्रश्न है—लड़ें किससे? जो शत्रु हमारे भीतर बैठे हैं, उनसे लड़ें। आलस्य शरीर में बैठा हुआ महाशत्रु है। महावीर ने देखामेरे आसपास शत्रुओं का घेरा है । मैं शान्ति से कैसे जी सकता हूं? महावीर का निश्चय था—मुझे शान्तिपूर्ण जीवन जीना है। जब तक शत्रु समाप्त नहीं होते तब तक शान्ति से नहीं जिया जा सकता। उन्होंने लड़ाई की और विजयी बन गए। विकासवाद का सूत्र
यह सचाई है, इस दुनिया में उसी व्यक्ति का अस्तित्व कायम रह पाता है, जिसमें पराक्रम है, शौर्य है, संघर्ष करने की शक्ति है, जो लड़ना जानता है। विकासवाद का एक सूत्र है--फिट्टेस्ट (FITTEST) । उसका अस्तित्व कायम रखता है, जो योग्यतम होता है। योग्यतम बनने के लिए निरन्तर संघर्ष चलता रहता है। जीवन के लिए संघर्ष को कभी समाप्त नहीं किया जा सकता । कायर व्यक्ति अपने अस्तित्व को बचा नहीं सकता। वे जातियां भी समाप्त हो गई, जो कायर थी। केवल वे ही बच पाए, जो शक्तिशाली थे।
। भगवान् महावीर पराक्रम के उद्गाता थे। उन्होंने पराक्रम का अवदान दिया, पराक्रम पर बल दिया। कभी-कभी यह आक्षेप किया जाता है.. अहिंसक लोग कायर होते हैं । इस झूठ पर बड़ा आश्चर्य होता है। महावीर अहिंसा के सबसे प्रबल पक्षधर थे और वे सबसे बड़े पराक्रमी थे। उन्हें डराने वाला कोई सामने नहीं आ सका। देवता, मानव, राक्षस, हिंस्र पशुकोई भी उन्हें डरा नहीं सके। महावीर ने लड़ना सीखा था । अहिंसा का इतना शक्तिशाली अस्त्र उनके पास था कि जो भी सामने आया, टिक नहीं पाया।
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