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प्रवचन २७/
| संकलिका
• इमेण चेव जुज्झाहि किं ते जुझण बज्झओ। ० जुद्धारिहं खलु दुल्लहं। ० जहेत्थ कुसलेहि परिणा-विवेगे भासिए। (आयारो ५/४५-४७)
० लड़ाई का आह्वान : आओ लड़ें ० युद्ध का निमंत्रण क्यों ? ० अस्तित्व : संघर्ष
पराक्रम, शक्ति और लड़ाई • युद्ध : महावीर की भाषा ० वर्तमान जीवनशैली ० दो महत्त्वपूर्ण अस्त्र
समानता शान्तवृत्ति लड़ें किससे ? कामना से लड़ें कलह से लड़ें घृणा से लड़ें विषमता से लड़ें ० क्यों बनते हैं हरिजन ईसाई ? ० धर्म-परिवर्तन का कारण ० समानता की आस्था जागे • विजयी होने का अस्त्र
शस्त्र नहीं, शान्ति है। कलह नहीं, समन्वय एवं समझौता है।
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