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ड्योढ़ी पर खड़ी किरण
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नाहट हो रही है । इस स्थिति में या तो नींद आ जाएगी या नींद से जिस हल्केपन की अनुभूति होती है, वह उपलब्ध हो जाएगी। अंतर की जागरूकता इतनी बढ़ जाएगी, नींद नहीं आने का कोई कष्ट नहीं होगा । समस्या के समाधान का महत्त्वपूर्ण सूत्र है - इस शरीर के इस क्षण का अन्वेषण । जो व्यक्ति वर्तमान क्षण पर ध्यान टिका देता है, वह बहुत सारी समस्याओं का समाधान पा लेता है ।
शरीरप्रेक्षा: आधार-सूत्र
' इस शरीर के इस क्षण को देखो' - आचारांग सूत्र का यह वाक्य शरीरप्रेक्षा का आधार-सूत्र है । यह जो स्थूल शरीर है, औदारिक शरीर है, उसमें जो वर्तमान में घटित हो रहा है, उसे देखें । नाड़ी की गति, हृदय की धड़कन और श्वास-प्रश्वास- इन तीनों का पता चलता है किन्तु पूरे शरीर में क्या हो रहा है, क्या हम उसे जानते हैं ? पूरे शरीर में नाड़ियां चल रही हैं, हमने कभी ध्यान ही नहीं दिया । जिस भाग को देखते हैं, वहां प्राण का प्रवाह ज्यादा हो जाता है। जहां प्राण का प्रवाह ज्यादा होता है, वहां रक्त संचार भी ज्यादा होगा । हमारे शरीर में कितने रसायन बन रहे हैं, अमृत टपक रहा है किन्तु हम उससे अनजान बने हुए हैं । जिसने खेचरी मुद्रा को साधा है, वह जानता है शरीर के भीतर कितना रस है, कितना आनन्द है । शरीर में कितना क्या घटित हो रहा है, यदि उसे देखने लग जाएं तो प्रमाद को मिटने में समय ही कितना लगेगा ?
शरीरप्रेक्षा का रहस्य
जब तक हम शरीर के आकार को ही देखते रहेंगे तब तक कुछ नहीं होगा । हमें देखने की दृष्टि को बदलना होगा । न शरीर को देखना है, न शरीर के आकार को देखना है । देखना वह है, जो हो रहा है, जो यथार्थ है । जो वर्तमान क्षण है, उसे देखना है । वर्तमान क्षण की प्रेक्षा, वर्तमान को देखना, इसका अर्थ है अप्रमाद । न प्रियता और न अप्रियता । न राग न द्वेष, केवल ज्ञेय को ज्ञाता की दृष्टि से जानना है, यह है शरीरप्रेक्षा का रहस्य । महावीर ने इस रहस्य का बोध देते हुए कहा - प्रमाद को मिटाना है तो शरीर के वर्तमान क्षण को देखो । जब तक वर्तमान क्षण को देखने की स्थिति नहीं बनेगी तब तक 'उट्ठिए णो पमायए'- - इस सूत्र की जीवन में सार्थकता नहीं होगी, प्रकाश की किरण उपलब्ध नहीं हो पाएगी ।
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