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________________ १४८ अस्तित्व और अहिंसा जाए ? यदि ऐसा नहीं होता है तो प्रमाद मत करो, यह बात भी विस्मृत हो जाएगी। हमें चोट उस पर करनी है, जो प्रमाद पैदा कर रहा है। जब तक उस मूल कारण पर चोट नहीं होगी, 'प्रमाद मत करो' यह बात भी याद नहीं रह पाएगी। समाधान-सूत्र महावीर ने इस समस्या का बहत सरल समाधान सुझाया---'इस शरीर का जो क्षण वर्तमान है, उसे देखो । तुम इस शरीर के इस क्षण पर ध्यान केन्द्रित करो, तुम्हारी प्रमाद की बीमारी मिट जाएगी।' वर्तमान क्षण में क्या हो रहा है, हम उसे जानें । यह उपाय है अप्रमाद और जागरूक होने का । हम अतीत और भविष्य को पकड़ते हैं, वर्तमान को नहीं देखते । प्रमाद को मिटाने के लिए वर्तमान क्षण पर ध्यान देना जरूरी है। इस क्षण में क्या हो रहा है ? किस कर्म का विपाक उदय में आ रहा है ? हम इसे जानें । चौबीस घंटे में हमारी किस समय में कौन-सी प्रकृति उदय में आ रही है ? अभी कौन-सा रसायन बन रहा है ? कौन-सा रसायन प्रभावित कर रहा है ? इसके प्रति जागरूक बनें । जो इन के प्रति जागरूक बनता है, वह विस्मृति या प्रमाद को मिटा सकता है। प्रमाद के कारण आजकल लोग ठंडा पेय बहुत पीते हैं, ठंडे पदार्थ बहत खाते हैं । यदि ज्यादा ठंडे पेय पदार्थ खाए जाएंगे तो विस्मृति ही पैदा होगी। ज्यादा ठंडा पेय पीने से कफ बढ़ता है। कफ स्मृति में मंदता लाता है, जड़ता लाता है। यदि ज्यादा गर्म पिएगा तो व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाएगा, क्रोधी बन जाएगा। विस्मृति के लिए जिम्मेदार हैं ठंडे पेय । आज की दुनिया में प्रमाद के बहुत कारण हैं। एक विस्मृति वह है, जिसमें व्यक्ति किसी बात को याद करता है और थोड़ी देर बाद ही भूल जाता है। वह विस्मृति बहुत खतरनाक नहीं है । एक विस्मृति वह है, जिसमें व्यक्ति अपने अस्तित्व को ही भूलने लग जाता है। यह बहुत गम्भीर स्थिति है । मैं मुनि हूं, मैं श्रावक हंव्यक्ति इस तथ्य को विस्मृत कर देता है । महावीर ने इस विस्मृति से बचने का महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया—शरीरप्रेक्षा, शरीर को देखना । अन्वेषण क्षण का प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में अनेक बार कहा जाता है-यदि नींद न आए तो उसकी चिन्ता मत करो । नींद नही आए तो लेट जाओ, लेटे-लेटे अन्वेषण शुरू कर दो, अनुसंधान शुरू कर दो । पैर के अंगूठे से लेकर मस्तिष्क तक पूरे शरीर में चित्त को घुमाओ, ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर--पूरे शरीर की प्रेक्षा करते चले जाओ। पांच-दस मिनट बाद अनुभव होगा, जैसे पूरे शरीर में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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