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ड्योढ़ी पर खड़ी किरण
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स्रोत बह रहा है। क्या इसे रोका जा सकता है ? व्यक्ति को यह अनुभूति होती है---मैं आत्मा हूं, आश्रव नहीं। यह भेद स्पष्ट हो गया--मैं नौका हूं पर छेद नहीं हूं। जो छिद्र बने हुए हैं, उन्हें रोका जा सकता है । जो पानी आ रहा है, उसे बंद किया जा सकता है। प्रकाश की किरण फूट गई, इसका अर्थ है--आदमी उठ गया । हम इस भाषा में सोच सकते हैं—जब आदमी निगोद में था, अव्यवहार राशि में था तब वह सोया हुआ था । जब वह उससे बाहर आया, मनुष्य बना तब वह बैठ गया। जब वह सम्यग् दृष्टि बना, व्रती बना, तब वह खड़ा हो गया । ऐसे व्यक्ति को लक्षित कर महावीर ने कहातुमने कितनी-कितनी यात्राएं की हैं, बड़ी कठिनाई से इस स्थिति में आए हो । इसलिए अब प्रमाद मत करो। उपनिषद् का प्रसिद्ध वाक्य है-उत्तिष्ठत ! जाग्रत ! उठो ! जागो ! भुलक्कड़ है आदमी
अज्ञान निगोद से हमारे साथ चल रहा है। हम जब कभी सघन मिथ्यात्व और सघन अन्धकार में थे, उस समय से ही अज्ञान और प्रमाद हमारे साथ-साथ चल रहा है । हम विस्मृति और अज्ञान से मुक्त नहीं हो पाए हैं । हम अनंत काल तक निगोद-सूक्ष्म वनस्पितकाय में रहे, उसके बाद द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जगत् में लम्बे समय तक रहे, अब मनुष्य जीवन में आए, सम्यग् दृष्टि बने, व्रती या महाव्रती बने । महावीर ने ऐसे व्यक्ति के लिए उपदेश दिया-तुम उठ गए हो, अब प्रमाद मत करो। जो सोता है, उसका भाग्य भी सो जाता है। जो बैठा हुआ है, उसका भाग्य भी बैठ जाता है । जो खड़ा होता है, उसका भाग्य भी खड़ा हो जाता है। कोई भी मुनि कभी बैठता नहीं, वह खड़ा रहता है । महावीर ने मुनि बनने के बाद प्रायः खड़ी मुद्रा में ध्यान किया । समस्या यह है—आदमी उठ जाने पर भी भूल जाता है, विस्मृति में चला जाता हैं । आदमी स्वभाव से ही भुलक्कड़ बना हुआ है । 'मैं साधु हूं' 'मैं श्रावक हूं'—इस बात की भी निरन्तर स्मृति नहीं रहती । वह इस बात को भूल जाता है----मैं श्रमण हूं.---'समणोऽहं' । क्यों होता है प्रमाद ?
प्रश्न है-—प्रमाद क्यों होता है ? व्यक्ति भूलता क्यों है ? हमारे भीतर भुलाने वाले तत्त्व बहुत बैठे हैं इसीलिए बार-बार जागरूक रहने का उपदेश दिया गया । महावीर ने गौतम से कहा--गौतम ! क्षण मात्र भी प्रमाद मत करो । सैकड़ों-हजारों बार यह उपदेश दिया जाता है किन्तु प्रमाद करने वाला प्रमाद करता चला जाता है । ऐसा क्यों होता है ? इस बिन्दु पर हमें सोचना होगा-क्या केवल उपदेश से काम चल जाएगा ? क्या ऐसा कोई उपाय है, जिससे प्रमाद न आए, जागरूकता बनी रहे, सतत अप्रमाद की स्थिति बन
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