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ड्योढ़ी पर खड़ी किरण
हमारा जीव जगत् बहुत विराट् है । वर्तमान में इस दुनिया में लगभग पांच अरब लोग हैं। यह इतनी छोटी संख्या है कि सागर की एक बूंद भी नहीं बनती। हम प्राणी जगत् को देखें। वनस्पति का जगत् सबसे विशाल प्राणी जगत् है। विराट और असीम । आज भी उस जगत् में ऐसे जीव हैं, जिन्होंने प्रकाश की किरण देखी ही नहीं। सूरज क्या होता है, इसका पता ही नहीं है । वे सघन अन्धकार में पड़े हुए हैं। वे अव्यवहार राशि के जगत् से व्यवहार राशि के जगत् में आए ही नहीं । उन्होंने प्रकाश में आने के लिए कभी उत्क्रमण ही नहीं किया। सूरज को देखने का अवसर ही उपलब्ध नहीं हुआ। उनके लिए प्रकाश का दर्शन हजारों कोस दूर है। सम्यग् दर्शन का अर्थ
___ कुछ जीव अव्यवहार राशि से बाहर निकले हैं, व्यवहार राशि में आए हैं। उन्हें आभास होता है-प्रकाश नाम का कोई तत्त्व है । वे एकेन्द्रिय से दो इन्द्रिय वाले जीव बनते हैं, तीन, चार और पांच इन्द्रिय वाले जीव बनते हैं । जब उसके बाद जीव समनस्क बनता है तब वह सोचता है.----यह दुनिया है। पांच इन्द्रिय वाले जीवों तक सोचने की जरूरत ही नहीं है । जब मन का योग मिलता है, व्यक्ति सोचना शुरू करता है, एक-दूसरे को देखना शुरू करता है, तब एक झिलमिल रोशनी का आभास शुरू होता है । मन है दीर्घकालिक संज्ञा । मन के बाद एक और संज्ञा जागती है--सम्यग् दृष्टि संज्ञा । जब यह संज्ञा जागती है तब प्रकाश की पहली किरण फूटती है । पहली किरण के फूटते ही दुनिया का सारा नक्शा बदल जाता है, दृष्टिकोण और धारणाएं बदल जाती हैं । 'शरीर मैं हूं'--यह अवधारणा बदल जाती है । वह सोचता है-यह शरीर मैं नहीं हूं, मैं कुछ और हूं।' नया प्रकाश, नई ज्योति मिली, सचाई उपलब्ध हो गई—जिस शरीर को मैं अपना मान रहा था, वह मेरा नहीं है। जो दिखाई दे रहा है, वह मैं नहीं हूं। मैं वह हूं, जो दिखाई नहीं दे रहा हूं। अस्तित्व की अनुभूति हो जाती है। सम्यग् दर्शन का अर्थ हैअपने आपको जान लेना । उठो, जागो
प्रकाश आगे बढ़ता है, व्यक्ति का चिन्तन स्पष्ट होता चला जाता है । वह सोचता है—मैं शरीर नहीं हूं किन्तु शरीर में लिप्त हूं। आश्रव का
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