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प्रवचन २६
संकलिका
(आयारो ५/२१) (आयारो ५/२३)
• जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणेत्ति मन्नेसि । • उठ्ठिए णो पमायए।
० अव्यवहार राशि : व्यवहार राशि ० विकास-क्रम ० प्रकाश की पहली किरण : सम्यग्दृष्टि संज्ञा ० सम्यग् दर्शन का अर्थ : अपने आपको जान लेना ० व्यक्ति सोचता है'मैं आत्मा हूं, शरीर नहीं हूं' 'मैं आत्मा हूं, आश्रव नहीं हूं' 'मैं शरीर नहीं हूं, किन्तु शरीर में लिप्त हूं' 'मैं नौका हूं पर छेद नहीं हूं 'जो छिद्र हैं, उन्हें रोका जा सकता है' 'जो आश्रव हैं, उनका संवर किया जा सकता है' ० भुलक्कड़ है आदमी • साधना का महत्त्वपूर्ण सूत्र
शरीर के वर्तमान क्षण की प्रेक्षा ० अप्रमाद का सूत्र : शरीरप्रेक्षा ० विस्मृति : जिम्मेदार कौन ? ० महत्त्वपूर्ण है क्षण का अन्वेषण ० कितना आनन्द है शरीर के भीतर ? ० आनन्द का स्रोत खोजें ।
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