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१४४ :
बंधन को याद करें
हम कर्म करते समय सिंह की तरह होते हैं किन्तु उसे भोगते समय सियार से भी नीचे की श्रेणी में चले जाते हैं । हमें अपने कृत पर भी ध्यान देना चाहिए | उसने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया, यह हो गया, वह हो गया -- इन सब बातों को याद करते हैं किन्तु इसके साथ-साथ यह भी याद करें – मैंने भी कुछ किया होगा, किसी को सताया होगा, किसी का धन चुराया होगा, किसी को पुत्र का वियोग कराया होगा । महावीर ने कितना सुन्दर दर्शन दिया- कर्म का विपाक आए तो बंधन को याद करो — ये बेड़ियां मैंने स्वयं डाली हैं ।
आस्तत्व और आहसा
संयम, चित्तशुद्धि, बंध और बंध-विपाक ये चार बातें निरन्तर सामने रहे तो हमारी पहली मूर्खता मिटेगी और पहली मूर्खता मिटेगी तो दूसरी मूर्खता अपने आप मिट जाएगी । महावीर ने महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया - हम मूर्खता को मिटाने के लिए मूर्च्छा से बचें, मूर्च्छा को मिटाने के लिए अधिकतम अप्रमाद का जीवन जीएं। हमारा यह संकल्प दृढ़ बने — मुझे अप्रमाद - सतत स्मृति का जीवन जीना है। जहां अपनी स्मृति है, आत्मा की स्मृति है, वहां मूर्खता का प्रवेश सम्भव नहीं है ।
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